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नियंत्रण मुक्‍त चीनी – गन्‍ना किसानों, उपभोक्‍ताओं और चीनी क्षेत्र के हितों की रक्षा

by | Jul 4, 2025

एन.सी.जोशी*

केंद्र सरकार ने एक महत्‍वपूर्ण फैसला करते हुए भारतीय चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्‍त करने के उपाय के रूप में लेवी चीनी तंत्र को भंग कर दिया और साथ ही, यह सुनिश्चित किया कि समाज के कमजोर वर्गों को सब्सिडी वाली मौजूदा कीमत पर चीनी मिलती रहे और राशन की दुकानों से चीनी बांटने के कारण उन पर कोई वित्‍तीय बोझ न पड़े। इस आशय का एक नोटिफिकेशन 7 मई, 2013 को जारी किया जा चुका है।

इस महत्‍वपूर्ण फैसले के बाद सरकार ने सुनिश्चित कर दिया है कि वह इस क्षेत्र के सभी महत्‍वपूर्ण पक्षों के हितों की रक्षा करेगी। इनमें उद्योगपति, किसान, उपभोक्ता और समाज के कमजोर वर्ग के लोग शामिल हैं।

जहां तक उद्योग का सवाल है, इस बात के सभी उपाय किये गए हैं कि वह अपना उत्‍पाद बिना किसी रोकटोक के अच्‍छी कीमत पर बेच सकें। तरलता बेहतर रहने से भारत के लाखों गन्‍ना उत्‍पादकों को चीनी मिलों द्वारा उचित मूल्‍य दिए जाने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। साथ ही, उपभोक्‍ताओं को चीनी उपलब्‍ध रहने का भरोसा होगा और हर साल इसकी उपलब्‍धता दस प्रतिशत अधिक होगी।

सरकार ने फैसला किया है कि वह उन राज्‍य सरकारों को खर्च की प्रतिपूर्ति करेगी जो चीनी की सार्वजनिक वितरण व्‍यवस्‍था के जरिए बांटने के लिए बाजार दर से कम पर खरीद करती है और इस प्रकार से रुपये 3100 करोड़ का अतिरिक्‍त बोझ उठाती हैं।

चीनी को नियंत्रण मुक्‍त करने का मुद्दा काफी लम्‍बे समय से सरकार के ध्‍यान में था। गन्‍ना किसान संघों के प्रतिनिधि और चीनी मिलें तथा अन्‍य प्रमुख हितधारक इस संबंध में आवेदन देकर काफी लंबे अरसे से मूल्‍य निर्धारण प्रक्रिया की मांग कर रहे थे।

सरकार भी सबको समान अवसर देते हुए ऐसा माहौल बनाना चाहती थी कि सभी के हितों की रक्षा हो सके और दूसरी ओर चीनी उद्योगों का‍ भी विकास हो

चीनी को नियंत्रण मुक्‍त करने की मांग देश में होने वाली चीनी उत्‍पादन में घटबढ़ की प्रकृति से निकली। ऐसी हालत चीनी उद्योग को कठिन स्थिति में डाल देती है और इस स्थिति में उन्‍हें व्‍यापार के बेहतर विकल्‍प उपलब्‍ध नहीं होते जिसका अंतत: गन्‍ना उत्‍पादकों पर असर पड़ता है। गन्‍ना किसान एक सामान्‍य वर्ष में अच्‍छी शुरूआत करते है और उम्‍मीद करते हैं कि उनके गन्‍ने की बकाया राशि ज्यादा दिनों तक देय नहीं रहेगी। इसी उम्‍मीद पर वे अपनी और ज्यादा जमीन पर गन्‍ने की खेती शुरू कर देते हैं। इससे गन्‍ने का उत्‍पादन बढ़ जाता है और ज्‍यादा चीनी पैदा होने लगती है। परिणामस्‍वरूप, चीनी का स्‍टॉक मार्केट में बढ़ जाता है और कीमतों में गिरावट आने लगती है। नतीजा यह होता है कि किसानों को उनके द्वारा सप्‍लाई किये गए गन्‍ने का मूल्‍य बकाया रह जाता है। इस तरह से कम आमदनी होने पर किसान अपने गन्‍ने की ज्‍यादा परहवाह नहीं करते और बाद के वर्षों में गन्‍ने की फसलों का क्षेत्रफल कम हो जाता है। जिन वर्षों में गन्‍ने का उत्‍पादन कम होता है उन वर्षों में किसान गुड़ का उत्‍पादन ज्‍यादा करते है और इस प्रकार से उनके उत्‍पाद का एक बड़ा हिस्सा शराब उद्योग में चला जाता है। शीरे का इस्‍तेमाल भी शराब उद्योग में होता है । इस तरह से गन्‍ने  का उत्‍पादन कम होता है तो इसका इस्‍तेमाल अन्‍य क्षेत्रों में होने लगता है और नतीजा यह होता है कि चीनी मिलों को गन्‍ने की सप्‍लाई कम मिलने लगती है।

इसके परिणामस्‍वरूप चीनी की कीमतें बढ़ जाती है और चीनी मिलों की आमदनी अधिक होने लगती है। वह अपने बकाया गन्‍ना मूल्‍य का भुगतान करती है और किसानों को अच्‍छी कीमत मिल जाती है। साथ ही, उन्‍हें ज्‍यादा रकबे पर गन्‍ने की खेती करने का प्रोत्‍साहन मिलता है ओर एक बार फिर गन्‍ने की खेती ज्‍यादा क्षेत्रफल में होने लगती है। दो या तीन वर्षों के समय में एक बार फिर चीनी का उत्‍पादन बढ़ जाता है और इस तरह से घटबढ़ का चक्र चलता रहता है।

केंद्र सरकार को पूरा भरोसा था कि वह चीनी को नियंत्रण मुक्‍त करने से जो अतिरिक्त खर्च आयेगा, उसे वहन कर सकेगी और इस तरह से वर्ष    2011-12 (अक्‍तूबर-सितंबर) में 263.50 लाख मीट्रिक टन अतिरिक्‍त चीनी उत्‍पादन का लक्ष्‍य प्राप्‍त कर सकेगी। यह उत्‍पादन लक्ष्‍य 2010-11 के चीनी सीजन के लिए तय 243.50 लाख मीट्रिक टन के लक्ष्‍य से 20 लाख टन ज्‍यादा था। पिछले तीन चार वर्षों में चीनी उत्‍पादन की फसली घटबढ़ भी कम होनी शुरू हो गई थी और चीनी का बाजार मूल्‍य पूरे 2012-13 चीनी सीजन के दौरान लगभग एक सा रहा।

सरकार ने चीनी को नियंत्रण मुक्‍त करने के पूरे मामले पर विचार करने के लिए रंगराजन समिति की नियुक्ति की। इस समिति ने कहा कि लेवी की चीनी खरीदना और उसे सार्वजनिक वितरण व्‍यवस्‍था के जरिए बेचना क्रास सब्सिडी जैसा ही है और यह ना तो आम उपभोक्‍ता के हित में है और ना ही चीनी क्षेत्र के पक्ष में, इस समिति ने सिफारिश की कि लेवी कस चीनी वितरण बंद किया जाये।

इस प्रकार से रंगराजन समिति की रिपोर्ट से दो महत्‍वपूर्ण मुद्दे सामने आये जिन पर सरकार को फैसला करना था। ये मुद्दे थे, पहला तो यह कि क्‍या  चीनी को सार्वजनिक वितरण व्‍यवस्‍था के जरिए बेचना जारी रखा जाए और दूसरा अगर सार्वजनिक वितरण व्‍यवस्‍था के जरिए चीनी वितरण व्यवस्था जारी रखना है तो चीनी मिलों से चीनी खरीद की वर्तमान व्‍यवस्‍था जारी रखा जाए अथवा सार्वजनिक वितरण व्‍यवस्‍था की सप्‍लाई के स्‍थान पर खुले बाजार में खरीद में कोई तरीका अपनाया जाये।

सरकार के सामने जो मुद्दे उपलब्‍ध थे वह काफी जटिल थे। इन पर राज्‍य सरकारों का सहयोग ही नहीं प्राप्‍त करना था बल्कि इनसे जुड़े हुए महत्‍वपूर्ण कई मुद्दों पर विचार किया जाना था। इनमें सरकारी खरीद की लागत में वृद्धि, बाजार में पैदा होने वाली समस्‍याओं जैसे गन्‍ने की कीमत का तुरंत भुगतान ना हो पाना और सब्सिडी का बोझ जैसी बातें शामिल थीं। महसूस किया गया कि सार्वजनिक वितरण व्‍यवस्‍था से चीनी को हटा देना मंजूर नहीं होगा। इस सिलसिले में बड़ा फैसला इस संबंध में लिया जाना था कि अगर सार्वजनिक वितरण व्‍यवस्‍था के जरिए चीनी का वितरण जारी रखा जाना है तो अतिरिक्‍त बोझ कौन उठायेगा ? अतिरिक्‍त बोझ रुपये 13.5 प्रति किलोग्राम आता था। साथ ही चीनी को नियंत्रण मुक्‍त करने के कारण अतिरिक्‍त सब्सिडी का रुपये 3100 करोड़ बोझ भी आता है जिसमें वितरण लागत शामिल नहीं होती।

इस समय खुले बाजार में चीनी रुपये 32 प्रति किलोग्राम के आसपास बिक रही है। खुदरा दर पर बाजार में सार्वजनिक वितरण व्‍यवस्‍था के जरिए रुपये 13.5 प्रति किलोग्राम की दर से बेचने के लिए भी अतिरिक्‍त सब्सिडी चाहिए। चीनी की सार्वजनिक वितरण व्‍यवस्‍था के जरिए यह दर 2002 से संशोधित नहीं की गई है। सरकार सार्वजनिक वितरण व्‍यवस्‍था के द्वारा रुपये 13.5 प्रति किलो की दर से चीनी की बिक्री हर किलो पीछे 6 रुपये की सब्सिडी देकर और 19 रुपये 5 पैसे प्रति किलो की दर से चीनी मिलों से लेवी की चीनी की खरीद कर करती है।

इस समय सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के जरिए सब्सिडी वाली कीमत पर कुल 27 लाख टन चीनी रूपये 2556 करोड़ की बेची जाती है। नियंत्रण मुक्‍त हो जाने पर अतिरिक्‍त बोझ का मतलब होगा कि सरकार 13 रुपये प्रति किलो की दर से चीनी की कीमत पर सब्सिडी देगी जो कि इस समय चीनी मिलों द्वारा वहन की जाती है। यह सब्सिडी घटक चीनी मिलों से खरीदी जाने वाली खुली चीनी की दर रुपये 32 और चालू साल के लिए तय की गई लेवी कीमत के आधार पर रुपये 3100 करोड़ बैठती है। इसमें वितरण लागत शामिल नहीं है।

केंद्र सरकार ने सब्सिडी के मामले में अतिरिक्‍त बोझ खुद वहन करने का फैसला किया है।

सरकार के आंशिक रूप से चीनी को नियंत्रण मुक्‍त करने के फैसले का खुले बाजार में चीनी मूल्‍य पर कोई असर नहीं पड़ा है। देश में चीनी का विशाल भंडार इस साल मौजूद है। अत: उम्‍मीद की जानी चाहिए कि कुल पैदावार 24.5 मिलियन टन होगी जबकि जरूरत सिर्फ 22.2 मिलि‍यन टन की होती है।

अब राज्‍य सरकारें भी खुले बाजार में एक पारदर्शी व्‍यवस्था के जरिए मुक्‍त चीनी खरीद कर सकेगी। उनकी यह खरीद रुपये 32 प्रति किलोग्राम की दर से होगी जिसको पिछले दो वर्षों से बढ़ाने की जरूरत महसूस नहीं की गई है।

सरकार ने पहले ही सुनिश्चित कर लिया था कि चीनी को आंशिक रूप से नियंत्रण मुक्‍त करने के इस महत्‍वपूर्ण फैसले का गन्‍ना किसानों के हितों पर कोई बुरा असर ना पड़े, साथ ही, आम आदमी और चीनी क्षेत्र का विकास भी सुनिश्चित हो सके।

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