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भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता पूर्व मध्य भारतीय रेलवे

by | Jul 4, 2025

फोटो सोशल मिडिया

दानापुर: भारतीय रेल राष्ट्र की जीवनरेखा कहलाती है। यात्री और माल ढुलाई सेवाओं में तेजी से विकास करने के लिए जहाँ सार्वजनिक निजी भागीदारी(पीपीपी मॉडल) को बढ़ावा दिया गया तो रेलवे कर्मचारियों की भर्ती पर रोक लगा कर ठेका कर्मचारी रखने की कुप्रथा को बढ़ावा मिला और साथ ही इन ठेकेदारों के महाशोषण की प्रथा भी चल निकली। इन ठेकेदारों को रखने से दलाली का धंधा भी खूब चल रहा है। इस डिजिटल दौर में जहाँ हर जगह ऑनलाइन पेमेंट होती है वही इन ठेकेदारों को दो महिने में एक बार तनख्वाह मिलती है वह भी केश।

ना पी.एफ, ना ई.एस.आई.सी

इन ठेका कर्मचारियों को निर्वाह निधि(पी.एफ) और  कर्मचारी राज्य बिमा(ई.एस.आई.सी) जैसी सुविधाओं से भी वंचित रखा जाता है। पूर्व मध्य रेलवे में कई सालों से इनक्वायरी कलर्क, वेटिंग रुम अटेंडेड और ना जाने कितने ठेका कर्मचारी इसी क्रम में कार्य कर शोषण का शिकार हो रहे है।

दानापुर मंडल के कर्मचारियों की दयनीय स्थिति

सबसे दयनीय स्थिति दानापुर मंडल के ठेका कर्मचारियों की है वहाँ जंगलराज चल रहा है। ना कोई सुनने वाला है ना कोई देखने वाला है। जहाँ नज़र घुमाओ हर जगह दलाल दलाली करते नज़र आएंगे। भारतीय रेल यातायात के मामले में विश्व में चौथे स्थान पर आता है लेकिन चंद अफसर और ठेकेदारों की मिली भगत से भारतीय रेलवे की छवि धूमिल हो रही है और रेलवे अपनी गरिमा खोता जा रहा है।

कर्मचारियों की तनख़्वाह

सुविधाओं की बात छोड़कर अगर हम इनकी तनख्वाह की बात करें तो आपको हैरानी होगी कि 2 महिने में एक बार  इनक्वायरी क्लर्क को 7000 रु. और वेटिंग क्लर्क को 5000 रु. हाथ में दिए जाते है।

फर्ज़ी पी.एफ के पैसे की लूटमार

सूत्रों की मानें तो लूट का कल्चर तो यहाँ तक है कि ठेकेदारों द्वारा फर्जी बैंक अकाउंट बनवाकर पी.एफ और ई.एस.आई.सी जमा करवाया और निकाला जाता है। बैंक भी इस दलाली में संलिप्त है। भविष्य निधि कार्यालय में भी इन ठेकेदारों की ज़बरदस्त सेटिंग होती है। तभी आसानी से यह लूट हो रही है। एकाउंट सेलेरी और पी.एफ शायद किसी अच्छे डिविज़न में जा रहा होगा इस बात की भी पड़ताल करने की आवश्यकता है।

ठेका कर्मचारी सबसे ज्यादा कॉमर्शियल, ट्रेफिक, इंजीनियरींग, हाउस कीपिंग में अपनी सेवाएं दे रहे है। नाइट ड्यूटी करने वाले को नाइट अलाउंस और अन्य किसी भी तरह की सुविधा नहीं मिलती।

निजीकरण के दौर में कम वेतन एक समस्या है लेकिन कार्य के अनुरुप औसत वेतन तो दिया जा सकता है और देना भी चाहिए कि कर्मचारी अपनी जिन्दगी का गुज़ारा आसानी से कर सके।

इस मामले में मजदूर संगठन, न्यायविद्, जाँच एजेंसियों, एन.जी.ओ को हस्तक्षेप करके इस भ्रष्ट व्यवस्था को रोकना चाहिए।

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