By Wazhul Qamar, Maeeshat
बिहार बोर्ड के परीक्षा में 70% परीक्षार्थियों के असफल होने के निम्नलिखित वज़ह हो सकते हैं
1. नक़ल और टॉपर घोटाले के फजीहत के बाद बोर्ड ने नक़ल रहित परीक्षा करवाया।
2. 8 मई को कई अखबारों ने खुलासा किया था कि बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने जो मास्टर ऐन्सर शीट उत्तरपुस्तिका जाँच कर्ताओं को सौंपी थी जिसके अधिकांश प्रश्नों की उत्तर ग़लत थे। जिसकी जानकारी एक जाँच कर्ता शिक्षक विनय आनंद ने ईटीवी न्यूज़ 18 हिन्दी के पत्रकारों से बात करते हुए दिया था कि साईंस के मॉडल ऐन्सर शीट के 15% उत्तर ग़लत हैं। यदि किसी जाँच कर्ता ने ध्यानपूर्वक आत्म विश्वास के साथ जाँच नही किया और परीक्षा समिति के द्वारा दिये गये ऐन्सर शीट को सही मान कर नंबर दिया तो अधिकांश बच्चों के फेल होने या नंबर कम आने की सम्भावनाएं बढ़ सकती हैं।
इसकी पुष्टि 8 मई को ही हो गई थी कि 16 लाख बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा। पर तब सब को ये महज़ एक मज़ाक लगा था पर कल जैसे 12 वीं की रिज़ल्ट आई उसका नतीजा देख बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की लापरवाही सवालों के कटघरे में दिख रही है क्योंकि इस साल के टॉपर खुशबू कुमारी के इलावा बहुत सारे परीक्षार्थियों ने दावा किया है कि उनके मार्कस उनके उम्मीद से कम आये हैं और वे कॉपी री जाँच करायेंगे।
3. परीक्षार्थियों को उम्मीद थी इस बार भी नक़ल होगी इसी भरोसे ठीक से तैयारी नही किया ।
4. अच्छे टियुश्न अच्छे बुक्स मुहैया कराने के बजाये माँ बाप ने जियो का अनलिमिटेड सीम बच्चों को प्रसाद समझ कर थमा दिया।
5. बिहार में सैलेब्स से पढ़ाई नही होती है जैसा कि दूसरे राज्यों में होता है विधार्थियों पर इस का बुरा असर ये पड़ता है कि मजबूरन उन्हें पूरे पुस्तक को रट्टा मरने की आदत डालनी पड़ती है। यानी सरकार रट्टु तोता बन ने पर मज़बूर करती है जो बच्चे रट्टा मरने में सफ़ल नही होते हैं। उन में से अधिकांश पढ़ाई छोड़ कर मज़दूरी करने में लग जाते हैं या फ़िर ऐसे स्कूल ढूँढते हैं जिनके प्रबन्क शिक्षा मीफीया हो और नक़ल से लेकर पास कराने तक का सेवा देते हों। इस के बदले बच्चों से मोटी रक़म ऐंठते का अवसर देने से बच्चे भी बाज नही आते इस का खुलासा अगले गत वर्ष पकड़े गये टॉपरों ने भी क्या था।
सरकार यदि शिक्षा माफियाओं पर लगाम कसने के साथ साथ सैलेब्स लागू करने के विषय पर विचार विमर्श करे तो बहुत हद तक शिक्षा के स्तर में सुधार आ सकती है और बच्चों को भी रट्टु मियाँ नही बन ना पड़ेगा। ऐसे और भी पहलू हो सकते हैं जिस पे सरकार ध्यान नही देती है। दूसरी तरफ़ हाइयर एजुकेशन की बात करें तो यहाँ भी सरकार के दावे खोखले नज़र आ रहे हैं। क्योंकि ग्रेजुएशन के सेशन में अब तक कोई सुधार नही हुआ हर साल की तरह इस साल के सेशन का भी वही हाल रहा।
बता दें कि बिहार से ग्रेजुएशन करने में कई साल अधिक लग जाता है शायद इसी से ऊब कर ग्रेजुएशन के विधार्थियों ने फ़ेसबुक पर पंक्तियाँ लिखना शुरू कर दिया था कि ( ज़रूरी नही की प्यार करने से ही जिंदगी ख़राब होती है जे.पी यूनिवर्सिटी में अड्मिशन लेना भी मायने रखता है ) फ़िर भी सरकार की आँख नही खुली और परीक्षा में देरी होती गई।
बता दें कि बिहार में कुल 21 यूनिवर्सिटीज हैं। जिसमें से मात्र एक पटना यूनिवर्सिटी है जिस का सेशन समय से चलता है। विद्यार्थियों की माने तो इस की वज़ह इसमें नेताओं के बच्चों का पढ़ना है ये बात सच हो सकती है पर हमारे पास इस की कोई तीथ्य नही है। इसे सरकार के प्रति नाराज़गी कहना ही ज्यादा उचित होगा.