मुगलकाल में बनी जामा मस्जिद को गंभीर खतरा है। इसकी नींव खोखली हो गई है। मस्जिद विशाल प्लेटफॉर्म पर बनी है, जिसे दुकानदारों ने दुकानों की गहराई बढ़ाकर खोखला कर दिया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने इस खतरे को भांपने के बाद मुख्यालय को सारी स्थिति की जानकारी दी है।
आगरा किला रेलवे स्टेशन के सामने स्थित जामा मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने सन् 1648 में कराया था। मस्जिद प्लेटफॉर्म पर बनी, जिस पर चढ़ने के लिए 35 सीढि़यां हैं। मस्जिद पर पिछले दिनों उत्तर पूर्व की मीनार बनाने की मांग उठी। इस्लामिया लोकल एजेंसी ने पिछले दिनों इस संबंध में एएसआइ मुख्यालय को पत्र भेजा। अब इस पर एएसआइ आगरा सर्किल ने जानकारी दी है कि मस्जिद के प्लेटफार्म के मेहराब में दुकानें बनी हुई हैं। दुकानों की गहराई को बहुत अंदर तक बढ़ा लिया गया है। यह शुरुआत में करीब छह फुट गहरी थीं, अब 30 फुट तक कर ली गई हैं। इससे इमारत का प्लेटफार्म नीचे से खोखला हो गया है और नींव कमजोर हो गई है। इससे कभी भी हादसे की आशंका जताई गई है। अधीक्षण पुरातत्वविद आगरा सर्किल भुवन विक्रम ने महानिदेशक एएसआइ से दुकानों को खाली कराने का अनुरोध किया है, जिससे नींव को मजबूत किया सके।
इस मस्जिद में चार मीनारें बनाई गई थीं, लेकिन वक्त गुजरने के साथ इन मीनारों में झुकाव आता चल गया। इनके गिरने और हादसा होने की आशंका के चलते एएसआइ ने वर्ष 1970 में पहली मीनार उतार दी और वर्ष 71 में नई मीनार बनाई गई। इसके बाद वर्ष 76 में दूसरी मीनार उतार कर वर्ष 77 में नई मीनार बनाई गई। वर्ष 88 में तीसरी मीनार उतारी गई और इसकी जगह नई मीनार वर्ष 1991 में तैयार हुई। चौथी मीनार को वर्ष 90 में उतारा गया, नई मीनार अब तक नहीं बन सकी है।
दुकानें खाली कराने को सालों से कसरत
मस्जिद के नीचे बनी दुकानों को खाली कराने की कसरत लंबे समय से चल रही है। एएसआइ के संरक्षण सहायक अमरनाथ गुप्ता के मुताबिक नींव को नुकसान होने का हवाला दे पूर्व में कमिश्नर, डीएम और अन्य जिम्मेदार विभागों को कई पत्र भेज गए हैं, लेकिन कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई। वर्तमान में नई मीनार बनाना तो दूर की बात प्लेटफार्म मजबूत न किए गए तो कभी हादसा हो सकता है।
मस्जिद के प्लेटफार्म के नीचे चारों ओर बनी दुकानों को इस्लामिया लोकल एजेंसी ने ही किराये पर उठाया है। एजेंसी द्वारा ही इनका किराया वसूला जाता है। दुकानों की गहराई बढ़ने से नींव कमजोर होने की बात को एजेंसी खारिज कर रही है। एजेंसी के चेयरमैन असलम कुरैशी का कहना है कि एएसआइ चौथी मीनार नहीं बनाना चाहता है, इसके लिए इस तरह बहाने बनाए जा रहे हैं।
जामा मस्जिद के संरक्षण का काम कई सालों से लगातार चल रहा है। एएसआइ के रिकार्ड के मुताबिक 2001 से 2016 तक मस्जिद में संरक्षण कार्य पर 1.63 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं।