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भारत में ऐसे शुरुआत हुई थी मजदूर दिवस की

by | Jul 4, 2025

By Maeeshat News 

एक मई को दुनिया के कई देशों में लेबर डे (श्रमिक दिवस) मनाया जाता है. इस दिन देशभर में मजदूरों की छुट्टी रहती है. भारत ही नहीं दुनिया के लगभग 80 देशों में इस दिन की छुट्टी होती है.

भारत में मजदूर दिवस कामकाजी लोगों के सम्‍मान में मनाया जाता है. भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्‍दुस्‍तान ने आजादी से पहले 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी. उस समय इसे मद्रास दिवस के रूप में मनाया जाता था. इसी दौरान भारत में पहली बार लाल झंडा भी फहराया गया था.

अगर मजदूर दिवस के इतिहास की बात करें तो अंतराष्‍ट्रीय तौर पर मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत 1 मई 1886 को हुई थी. अमेरिका के मजदूर संघों ने मिलकर निश्‍चय किया कि वे 8 घंटे से ज्‍यादा काम नहीं करेंगे. इसके लिए संगठनों ने हड़ताल की. इस हड़ताल के दौरान 4 मई को शिकागो की हेमार्केट में बम ब्लास्ट हुआ. इस बीच पुलिस ने मजदूरों पर गोली चला दी, जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई और 100 से ज्‍यादा लोग घायल हो गए. इसके बाद 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में ऐलान किया गया कि हेमार्केट नर-संहार में मारे गए निर्दोष लोगों की याद में 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा. इस दिन सभी कामगारों और श्रमिकों का अवकाश रहेगा.

हरियाणा सरकार ने इस साल मजदूर दिवस नहीं मनाने का फैसला किया है. हरियाणा के श्रम राज्य मंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा कि हमने फैसला लिया है कि 1 मई को मजदूर दिवस नहीं मनाएंगे. मजदूर दिवस विश्वकर्मा दिवस पर मनाया जाएगा, जो दीपावली के अगले दिन होता है. हालांकि मजदूर संगठनों ने इसका विरोध किया और उनका कहना है कि सरकार की मंशा ठीक नहीं है.

भारत देश में मजदूरों की मजदूरी के बारे में बात की जाए तो यह भी एक बहुत बड़ी समस्या है, आज भी देश में कम मजदूरी पर मजदूरों से काम कराया जाता है। यह भी मजदूरों का एक प्रकार से शोषण है। आज भी मजदूरों से फैक्ट्रियों या प्राइवेट कंपनियों द्वारा पूरा काम लिया जाता है लेकिन उन्हें मजदूरी के नाम पर बहुत कम मजदूरी पकड़ा दी जाती है। जिससे मजदूरों को अपने परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल हो जाता है। पैसों के अभाव से मजदूर के बच्चों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है।

भारत में अशिक्षा का एक कारण मजदूरों को कम मजदूरी दिया जाना भी है। आज भी देश में ऐसे मजदूर है जो 1500-2000 मासिक मजदूरी पर काम कर रहे हैं। यह एक प्रकार से मानवता का उपहास है। बेशक इसको लेकर देश में विभिन्न राज्य सरकारों ने न्यूनतम मजदूरी के नियम लागू किये हैं, लेकिन इन नियमों का खुलेआम उल्लंघन होता है और इस दिशा में सरकारों द्वारा भी कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता और न ही कोई कार्यवाही की जाती है।

आज जरुरत है कि इस महंगाई के समय में सरकारों को प्राइवेट कंपनियों, फैक्ट्रियों और अन्य रोजगार देने वाले माध्यमों के लिए एक कानून बनाना चाहिए जिसमे मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी तय की जानी चाहिए। मजदूरी इतनी होनी चाहिए कि जिससे मजदूर के परिवार को भूंखा न रहना पड़े और न ही मजदूरों के बच्चों को शिक्षा से वंचित रहना पड़े। आज भी हमारे भारत देश में लाखों लोगों से बंधुआ मजदूरी कराई जाती है। हलाकि इसके लिए बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम भी बनाई गयी है।

आज भारत देश में बेशक मजदूरों के काम करने का संबंधित कानून लागू हो लेकिन इसका पालन सिर्फ सरकारी कार्यालय ही करते हैं, बल्कि देश में अधिकतर प्राइवेट कंपनियां या फैक्टरियां अब भी अपने यहां काम करने वालों से 12 घंटे तक काम कराते हैं। जो कि एक प्रकार से मजदूरों का शोषण हैं। आज जरुरत है कि सरकार को इस दिशा में एक प्रभावी कानून बनाना चाहिए और उसका सख्ती से पालन कराना चाहिए।

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