अक्सर आपने महिलाओं को सिगरेट फूंकते हुए देखा होगा लेकिन क्या आप जानते है जब सिगरेट की शुरुआत हुई तब महिलाओं का सिगरेट पीना टैबू माना जाता था।
ये बात साल 1928 की है जब पूरी दुनिया में प्रथम विश्व युद्ध के बाद का समय चल रहा था। युद्ध के चलते अधिक्तर अमेरिकी पुरुष सेना में चले गए थे। अब घर की जिम्मेदारियां संभालते हुए महिलायें घर से बाहर निकलकर जॉब करने लगी थी। ये दौर बड़ा ही परिवर्तन वाला था। अब महिलाएं सड़कों पर समान वेतन समान कार्य, महिलाओं के वोट डालने के अधिकार जैसे मुद्दे और महिलाओं के हक़ के लिए सड़कों पर उतर रही थी।
ठीक उसी समय अमेरिका की तंबाकू कंपनी का प्रेसिडेंट जार्ज वाशिंगटन हिल ने इस नारीवादी बदलाव को बिजनेस टैबू की तरह सिगरेट पीने को महिलाओं के हक़ से जोड़ कर अपने बिजनेस से भुनाया।
जार्ज ने इस मुश्किल प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए एडवर्ड बर्नेस की मदद ली जो दुनिया के सबसे प्रभावशाली साइकोलॉजिस्ट और साइकोएनालिसिस के गॉडफ़ादर सिगमंड फ्रायड के भतीजे थे।
एडवर्ड का मत था कि अगर लोगों का चीजों और अलग-अलग तरह के सामानों के साथ भवनात्मक संबंध जोड़ दिया जाए तो उपभोक्तावाद को एक नई दिशा मिल सकती है।
31 मार्च 1929 भले ही ज्यादातर लोगों के लिए खास न हो लेकिन इस दिन एडवर्ड ने अपनी मार्केटिंग और पब्लिक रिलेशन का नायाब नमूना पेश किया था। टार्चेस ऑफ़ फ्रीडम नाम के इस कैम्पेन के सहारे वह एक स्टीरियोटाइप और बनी हुई धरणा को तोड़ने डाला था। ये ईस्टर फेयर का मौका था जब न्यूयॉर्क में काफी भीड़ थी। इस भीड़ में एक महिला ने सब के बीचो-बीच सिगरेट पीने लगी जिससे सनसनी मच गई, मीडिया ने इस घटना को तुरंत कवर किया।
अब सिगरेट पीने को महिलाओं की आज़ादी से जोड़कर देखा जाने लगा था। धीरे-धीरे महिलाओं के लिए सिगरेट पीना अब एक मानसिक और सामाजिक क्रांति बन चूका था।