अब्दुल रशीद अगवान
एमसीडी के तक़रीबन सभी बड़े दावेदारों ने वोटर को लुभाने के लिए अपने अपने मेनीफेस्टो जारी कर दिये हैं।
मगर दिल्ली का नासूर बन चुका ग़ैरमंज़ूरशुदा कॉलोनियों को मंज़ूर करने का मसला किसी ने भी नहीं उठाया। इसके अलावा ख़स्ताहाल एमसीडी को माली लिहाज़ से मज़बूत बनाने का नक़्शा भी किसी के पास नज़र नहीं आता। ऐसा लगता है कि पार्टी कोई भी जीते दिल्ली के आधे से ज़्यादा इलाक़ों का हाल नहीं बदलने वाला।
इसका यह मतलब नहीं कि मायूस होकर वोट ही न दिया जाए बल्कि अब ऐसे उम्मीदवारों को सामने लाया जाए जो ख़ुदके या पार्टी के फायदों से ऊपर उठकर जनता का काम करने की नियत रखते हों।
‘आप’ ने जहां हॉउस टेक्स माफ करने का वादा किया है तो बीजेपी ने 10 रुपये में खाना खिलाने को तुरुप का पत्ता बनाया। स्वराज अभियान ने साफ दिल्ली की बात कही तो कॉग्रेस ने दो साल में एमसीडी को अपने पैरों पर खड़ी करने की बात कही। जिन एमसीडी पर कई हज़ार करोड़ का क़र्ज चढ़ा हो और स्टाफ कीे 45 दिन से ज़्यादा की तनख्वाह बाक़ी हो वे कैसे अपने लोक लुभालन वादों को पूरा करेंगी या एमसीडी चलाएंगी यह साफ नहीं है।
इसलिए सिर्फ ऐसे उम्मीदवारों को जिताने की ज़रूरत है जो एमसीडी में पहुंचकर एमसीडी और ग़ैरमंज़ूरशुदा कॉलोनियों के हक़ के लिए लड़ सकें। पार्टियां तो उस सतह पर गिर गई हैं जहां कोई उम्मीदवार लंगर खिला कर जीतना चाहता है तो कोई कहता है कि “आप तो बस मुझे जिता दो, बाक़ी सब मैं देख लूंगा।”