महाराष्ट्रा में राज एवं उधव ठाकरे की रणनीति
दानिश रेयाज़ ,मुंबई
क्या राज ठाकरे महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा के चुनाव में बादशाह बन जायें गे. अभी तक वो अपने आप को बादशाहगर कहलना पसंद करते रहे हैं. महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के गठन के बाद उन्हों ने जो पहला भाषण दिया था उसमे भी उन्हों ने यह बताने की कोशिश की थी की वो प्रदेश में किंगमेकर का किरदार ही अदा करना चाहते हैं जबकि बीते लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का समर्थन करके उन्हों ने कम से कम बीजेपी और शिवसेना के रिश्तों में दराड़ ज़रूर पैदा कर दी थी.
अब जबकि उन्हों ने खुद ही महाराष्ट्र की गददी पर बैठने का ऐलान किया है तो राजनैतिक पंडित इसे महज़ तुरुप के पत्ते के तौर पर देख रहे हैं.लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार और एनसीपी का ख़राब प्रदर्शन देखते हुए महाराष्ट्र में जहां बीजेपी अपना पांसा फेंकने में इह्तेयात से काम ले रही है वहीँ एनसीपी ने भी अपनी मुट्ठी नहीं खोली है. लेकिन मुख्यमंत्री की दौड़ में जिन लोगों ने अपना नाम पेश किया है उनमे राज के साथ उधव ठाकरे भी हैं. दोनों चचेरे भाई अपनी अपनी डफली लेकर अपना अपना राग ज़रूर अलाप रहे हैं लेकिन सियासी पंडित इन दोनों को केवल पैंतरे के रूप में देख रहे हैं.
दरअसल बीतते समय के साथ ही राज ठाकरे अपने आप को बदलने में लगे हुए हैं उत्तर भारतियों का मुद्दा भी अब उनके लिये फायेदेमंद नहीं रहा है, मराठा आरक्षण के ज़रिये अगर काँग्रेस ने मराठी वोट पर सेंध मारी है तो सीटों के बटवारे को लेकर बीजेपी-शिवसेना गटबंधन असमंजस का शिकार है. शायद इनबातों को ध्यान में रखते हुए ही राज ने अपने आप को मुख्यमंत्री के रूप में प्रमोट करने की कोशिश की है. लेकिन शिवसेना में लंबी पारी खेलकर कांग्रेस में शामिल होने वाले कॉर्पोरेटर राजन कीने कहते हैं. “ लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत को देखकर लोग अलग अलग अटकलें लगा रहे हैं लेकिन महाराष्ट्रा विधानसभा का चुनाव वैसा नहीं है.राज ठाकरे की एम ऐन एस अभी उतनी मज़बूत नहीं है जितना वो लोग आंक रहे हैं ना ही राज ठाकरे उतने बड़े लीडर बन गये हैं की महाराष्ट्रा की गद्दी उनको सौंप दिजाएगी.बीजेपी-शिवसेना के बीच दराड़ का लाभ उन्हें ज़रूर मिलेगा लेकिन उसवक्त जब गटबंधन टूट चूका हो और अभी वैसी स्थिती नज़र नहीं आ रही है.”
वारिष्ट्र पत्रकार जतिन देसाई भी ऐम ऐन एस को कोई मज़बूत पार्टी नहीं मानते, वह कहते हैं “लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे की जो जगहंसाई हुई है उसका असर अब ज़मीन पर भी दिखने लगा है. नासिक को एम ऐन एस का गढ़ समझा जाता है लेकिन पिछले कुछ दिनों में वहां पर भी पार्टी की हालत ख़राब हुई है यही वजह है की पिछले हफ्ते जब राज वहां गये तो एम ऐन एस के एम एल ऐ वसंत गीते और पार्टी जनरल सेक्रेटरी अतुल चंदक उनसे मिलने तक नहीं आये.सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि पार्टी के आधे कार्पोरेटर भी गायब रहे. ऐसी हालत के बाद भी अगर कोई ये कहे की मैं प्रदेश का मुख्यमंत्री बनुगा तो उसे दीवाने की बड ही कहा जायेगा.” लेकिन जतिन कहते है कि “अगर पार्टी को अच्छा प्रदर्शन करना है तो राज को आराम तल्बी छोड़नी होगी.एक दिन मीटिंग और दस दिन आराम करके पार्टी नहीं चलाई जा सकती. ना ही अपने कार्यकर्ताओं को अपमानित करके पार्टी चलाई जा सकती है.अगर राज अपना आचरण बदलें तो शायद कहा जासकता है कि लोग पार्टी से जुड़ेंगे.” लेकिन इसी के साथ जो अहम् बात जतिन कहते हैं वो यह कि “ जब तक राज ठाकरे खुद चुनाव नहीं लड़ते लोग उन्हें संजीद्गी से नहीं लेंगे ना ही लोग उनकी बातों को संजीदा मानें गे.”
लेकिन दिलचसप बात ये है कि वारिष्ट्र पत्रकार एवं लेख़क विवेक अग्रवाल राज ठाकरे की तुलना अरविं केजरीवाल से करते हैं वह कहते हैं. “राज ठाकरे गलत फहमी का शिकार हो गये हैं वो नरेन्द्र मोदी की उठान को अपने चाचा बालासाहब ठाकरे से जोड़ कर देख रहे हैं और इनके बीच अपने आप को रखने की कोशिश कर रहे है जो अपने आप में सब से बड़ी गलत फहमी है. इसी प्रकार राज की टीम को अभी सत्ता का कोई अनुभव भी नहीं है केवल नासिक कारपोरेशन में उनका प्रदर्शन देखने को मिल रहा है जो संतोषजनक नहीं है. लेहाज़ा मैं समझता हूँ की राज बहुत जल्द बाज़ी में हैं जिसकि वजह से उनका राजनैतिक अंजाम भी अरविंद केजरीवाल जैसा ही होगा की वो रही सही इज्ज़त लुटा बैठेंगे.”
इस बात से इनकार मुमकिन् नहिं कि राज ठाकरे अभी भी महाराष्ट्रा की सियासत में अपना कोई मक़ाम बनाने में सक्षम हुये हैं उनकी छवी अब भी एक अड़ियल नेता की है जो किसी की बात नहीं सुनता और ना ही किसी और को बर्दाश्त करना चाहता है. मुंबई एवं महाराष्ट्रा में उत्तर भारतियों समेत बाहर से आये हुये लोगों की बड़ी तादाद रहती है जो अब एम ऐन एस को पसंद नहीं करती. व्यापार जगत के लोगों में एम ऐन एस का ऐसा डर बैठा हुआ है कि व्यापारी पार्टी फंड में चंदा तो दे देना चाहता है लेकिन वोट देने में वो भी कतराता है . सियासी पंडितों का कहना है की राज ठाकरे इन बातों को अच्छी तरह जानते हैं तभी वह आने वाले चुनाव से परेशान नज़र आ रहे हैं कियुंकी आने वाला चुनाव न सिर्फ़ एम ऐन एस की परीक्षा लेगा बल्कि राज- उधव के अस्तित्व को भी दर्शायेगा. राज ने जिन महत्वकांक्षो के साथ अपनी पार्टी शुरू की थी बीते वर्षों के साथ ही अब उसकी अहमीयत ख़त्म हो चुकी है. प्रदेश में लोग अब एक ऐसी सरकार चाहते हैं जो प्रगति के पथ पर चलने वाली हो. जहाँ अराजकता और संवेदनशीलता के नाम पर राजनीति ना होती हो बल्कि जनता के हितों की रक्षा करने वाली ऐसी सरकार हो जो सब जन हिताये सब जन सुखाये की मार्गदर्शक हो.बीजेपी-शिव सेना कारपोरेशन में काबिज़ होकर और ऐन सी पी –कांग्रेस विधानसभा में अपनी पोज़ीशन मज़बूत बनाकर अब तक सत्ताधारी बनी रही है इन पार्टियों पर अब भी लोगों का विश्वास है लेकिन महाराष्ट्रा नव निर्माण सेना अब भी जनहित को अपील करने वाली किसी भी पहचान से वंचित है.राज ठाकरे अब उधव ठाकरे का मुक़ाबला करने मे सकक्षम नहिं हैं. बालासाहब ठाकरे के निधन के बाद लोगों को शंका थी की उनकी विरासत पर राज क़ब्ज़ा कर लेंगे लेकिन जैसे ही उधव और उनके बेटे आदित्या ने कारभार संभाला है और मराठी हितों की रक्षा के अपने पुराने सुर को अलापा है टूट टूट कर जाने वाले सैनिक पार्टी में वापस आने लगे हैं या कम से कम शिवसेना की शक्ति को बहाल करने में अपना योग्दान देने लगे हैं. ऐसे में निश्चित रूप से राज ठाकरे अलग थलग नज़र आ रहे हैं और उनका कोई महत्वा दिखाई नहीं पड़ रहा है. वैसे सत्ता की गलियां बड़ी पुरपेंच होती हैं कब कौन किया गुल खिला दे कुछ कहा नहीं जा सकता. अगर बीजेपी-शिवसेना अपना बरसों पुराना गटबंधन तोड़ती हैं तो यकीनन इसका फायेदा एम ऐन एस को भी मिलेगा लेकिन उसके बावजूद महाराष्ट्रा की गद्दी राज के लिए “अभी दिल्ली दूर है “जैसी कहावत जैसा है.
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