By Basant Kumar
सहारनपुर में जातीय संघर्ष के बाद 180 दलित परिवारों ने हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया है। ये लोग भीम आर्मी पर दंगा फ़ैलाने के आरोप से परेशान थे।
जब भी दलित समुदाय पर कोई हमला होता है उसके बाद धर्म परिवर्तन की खबरें आती है। 5 मई को सहारनपुर के शब्बीरपुर में महाराणा प्रताप की शोभायात्रा के दौरान दो समुदायों के बीच हुए जातीय संघर्ष में दलित समुदायों के लोगों के घरों में आग लगा दी गई। लोगों को तलवार और सरिये से मारा भी गया था।
इस घटना में लोगों को मुआवजा मिले इसके लिए दलितों के शोषण के विरोध में काम करने वाली भीम आर्मी ने 9 मई को सहारनपुर में एक पंचायत करने की कोशिश की जिसको पुलिस ने नहीं होने दिया। पुलिस के मना करने के बाद भीम आर्मी ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया और कई निजी और सरकारी गाड़ियों में आग लगा दी गई। इस दंगें का आरोप भीम आर्मी पर लगा। इसके बाद पुलिस भीम आर्मी के लोगों की छानबीन कर रही है। भीम आर्मी के सभी नेता इधर-उधर छुपे हुए है।
भीम आर्मी को पूरे मामले में आरोपी बनाए जाने से स्थानीय दलित समुदाय के युवाओं में नाराज़गी है। इसी नाराज़गी की वजह से सहारनपुर के रुपड़ी, कपूरपुर और ईगरी के 180 परिवारों ने देवी-देवताओं की मूर्तियों को नहर में विसर्जित कर बौद्ध धर्म अपना लिया है। इससे पहले भी सहारनपुर में दलित समुदाय के लोग बौद्ध धर्म अपना चुके है।
बीबीसी हिंदी में छपी एक खबर के अनुसार देश में 1991 से 2001 के बीच बौद्धों की आबादी में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सन 2001 की जनगणना के अनुसार देश में बौद्ध धर्म मानने वालों की संख्या अस्सी लाख है जिसमें से ज्यादातर दलित से बौद्ध धर्म बने हैं। देश में सबसे ज्यादा लगभग 59 लाख बौद्ध महाराष्ट्र में बने हैं। यूपी में सिर्फ 3 लाख के आसपास नवबौद्ध हैं।
जेएनयू के प्रोफेसर विवेक कुमार बताते हैं कि दलित समुदाय में रहते हुए किसी व्यक्ति को जो भी सरकारी लाभ मिलता है वो बौद्ध धर्म अपनाने पर भी मिलता है। जब बाबा साहब अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया तब यह व्यवस्था नहीं थी लेकिन जब वी.पी सिंह प्रधानमंत्री बने तो उनकी सरकार ने यह नियम बनाया कि दलित से बौद्ध बने लोगों को दलितों वाला अधिकार मिलता रहेगा। इनका जो जाति प्रमाण पत्र बनता है उसमें नवबौद्ध के बाद उनकी जाति लिखी जाती है। लखनऊ स्थित अंतराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के अध्यक्ष मदन शांति मित्र बताते हैं कि हम किसी को दलित या पिछड़ा नहीं मानते हैं। हमारे लिए सब एक बराबर हैं।
भीमराव अम्बेडकर विश्वविधालय से व्यवहारिक अर्थशास्त्र में पीएचडी कर रहे 26 वर्षीय संतोष चौधरी हजरतगंज स्थित अम्बेडकर हॉस्टल में रहते हैं। संतोष बताते हैं कि दलितों की स्थिति में तो कोई खास बदलाव नहीं आता है। ना ही बौद्ध धर्म अपनाने से उनकी आर्थिक स्थिति ठीक हो जाती है और ना समाजिक स्थिति में बदलाव आता है।
मेरे अनुसार यह विरोध का एक तरीका है। जब दलित समुदाय के लोग परेशान हो जाते है तो विरोध दर्ज कराने के लिए धर्म परिवर्तन कर लेते है।’’ प्रसिद्ध भारतीय समाजशास्त्री और जेएनयू के प्रोफेसर विवेक कुमार बताते हैं कि दलित समुदाय द्वारा धर्म परिवर्तन रोष प्रकट करने का एक तरीका है। दलित समुदाय के लोग सोचते है कि जो हिन्दू मनुवादी व्यवस्था उन्हें सदियों से दबा रही है उसे छोड़कर वो अपना विरोध दर्ज करा सकते हैं।
(संभार गांव कनेक्शन)