माधवी सैली | नई दिल्ली
कमजोर मॉनसून से खरीफ पैदावार में 7 फीसदी या उससे ज्यादा की गिरावट आ सकती है। हालांकि देश में अनाज का बड़ा स्टॉक है। इसलिए इससे कोई दिक्कत नहीं होगी। हालांकि, ग्रामीण इलाकों में कमजोर मॉनसून का बुरा असर दिखने लगा है। तेलंगाना के कुछ इलाकों में स्थिति गंभीर है, जहां कर्ज के चलते कई किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
अधिकारियों का कहना है कि खरीफ फसल की बुआई केवल 5.332 करोड़ हेक्टेयर में हो पाई है। पिछले साल यह रकबा 7.02 करोड़ हेक्टेयर था। हालांकि, अधिकारी कह रहे हैं कि बुआई बढ़ सकती है, क्योंकि अभी ऑयलसीड्स, दालों, मोटे अनाज और धान की फसल और 10 दिन तक लगाई जा सकती है।
सरकार ने पहले अनुमान लगाया था कि खरीफ पैदावार बढ़कर 12.937 करोड़ टन रह सकती है, जो पिछले साल के 12.807 करोड़ टन से कुछ ज्यादा है। हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह टारगेट पूरा करना मुश्किल होगा, जब मॉनसून सीजन की शुरुआत से बारिश 24 फीसदी कम रही है। मोटे अनाजों, ऑयलसीड्स और कॉटन की बुआई महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में पिछले हफ्ते तक काफी कम रही थी। एग्रीकल्चर इकनॉमिस्ट और प्लानिंग कमीशन के फॉर्मर मेंबर वाई के अलघ के मुताबिक, ’24 फीसदी कम बारिश और प्लांटिंग में पिछले साल के मुकाबले 24 फीसदी गिरावट बड़ा अंतर है। इससे प्रॉडक्शन 8 फीसदी से 20 फीसदी तक घट सकता है, पिछले सूखे या खराब बारिश के दौरान हमने ऐसा ही देखा है।’ अलघ ने कहा कि अगर सही वक्त पर पानी नहीं मिल पाया तो यील्ड कम हो जाएगी।
नॉर्थ और नॉर्थवेस्ट इंडिया में बारिश सबसे कम हुई है। इस रीजन में बारिश सामान्य से 34 फीसदी कम रही है। एग्रीकल्चर मिनिस्ट्री के अधिकारियों का कहना है कि अगर मॉनसून डेफिसिट 24 फीसदी से रिकवर होकर 10-12 फीसदी पर आ जाता है तो इससे प्लांटिंग में गिरावट 15 फीसदी पर सीमित हो जाएगी। एक अधिकारी ने बताया, ‘अभी यह कहना जल्दबाजी होगी, मगर प्रॉडक्शन में 6 से 7 फीसदी की गिरावट आ सकती है।’
एक्सपर्ट्स का कहना है कि 2014 में बारिश 2009 जैसी ही है, जब इंडिया में 37 साल का सबसे बड़ा सूखा पड़ा था। हैदराबाद के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर में एग्रीकल्चर साइंटिस्ट जी वी रमनजानेयुलु ने कहा, ‘केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें यह नहीं समझ रही हैं कि बुआई के कुछ दिन ही बाकी रह गए हैं और उन्हें तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।’