चुनावी दंगल में हर कोई मंगल मना रहा है लेकिन जनता किसके साथ है अब भी केवल अटकलें ही लगाई जा रही हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों से पंकजा मुंडे की संघर्ष यात्रा चर्चा में है और जनता नई पीढ़ी को जांचना चाहती है मुंबई से दानिश रेयाज़ की रिपोर्ट
मुंबई कांग्रेस अल्पसंख्यक सेल के संयोजक निजामुद्दीन राईन पार्टी आफिस में अकेले बैठे रहते हैं अब वहां मिलने वालों की कोई लाइन नहीं लगी होती. मुंबई कांग्रेस भी अब सुना सुना दिखाई देता है जबकि महाराष्ट्र कांग्रेस की आफिस में मिलने वालों से ज़ियादा करमचारी नज़र आते हैं.यह उस पार्टी की दशा है जो अभी सत्ता के गलियारों में अपनी पैठ बनाये है. हालाँकि यह वह समय है जब अचार संहिता लगने में दो दिनों का समय बाक़ी है और लोग अपना काम करवाने की जल्दी में होते हैं. इसी प्रकार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (ऐनसीपी) की हालत है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने अकेले ही चुनाव प्रचार अभियान शुरू कर दिया है। पार्टी अध्यक्ष शरद पवार ने मुंबई में चुनावी अभियान की शुरुआत करते हुए उम्मीद जताई है कि ‘जनता उन्हें चौथी बार सरकार बनाने का मौका देगी जबकि मामला यह है कि पार्टी के पूर्व चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ. विजय कुमार गावित और पूर्व आदिवासी कल्याण मंत्री बबनराव पाचपुते गणेश उत्सव के मौके पर बीजेपी में शामिल होकर पार्टी की किरकिरी कर चुके हैं दिलचसप बात तो यह है कि चुनाव से पहले ही बीजेपी-शिवसेना के कार्यकर्ता मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारियों पर बातें करने लगे हैं यानि ऐक ओर यह तय किया जा चूका है कि सरकार तो बीजेपी-शिवसेना की बनेगी लेकिन पद प्रधान कौन होगा असल चर्चा का विषय यह होना चाहिये.
“दिल्ली में नरेंद्र महारष्ट्र में देवेन्द्र”, “ आरएसएस का हाथ है तो गडकरी का साथ है” “पंकजा ताई को लाना है “आत्मा” को शांति पहुँचाना है” “बदल गया राष्ट्र, बदलेगा महारष्ट्र” जैसे संदेश अब वाट्सअप पर शुरू हो चुके हैं जबकि सोशल मिडिया के माध्यम से चुनावी दंगल में हर कोई कूदता दिखाई दे रहा है.
महाराष्ट्र नव निर्माण वाहतुक सेना के अध्यक्ष और पार्टी के उपाध्यक्ष रह चुके हाजी अराफात शेख अगर त्याग पत्र देकर शिवसेना में शामिल हो चुके हैं तो उनके साथ हजारों कार्यकर्ताओं ने शिवसेना में शरण लेकर महायुती की सरकार बनाने का संकल्प ले लीया है जिसका नतीजा यह है कि एमऐनएस जो पिछले चुनाव में शिवसेना पर भारी पड़ी थी अब कमज़ोर नज़र आ रही है उसके कार्यकर्ता भी अब सिर्फ शिवसेना की झांकी देखना चाहते हैं. बीजेपी-शिवसेना गटबंधन लोकसभा की तरह विधानसभा जीतने के लिये अपनी पूरी रढ़निति बना चूका है. जो कुछ बाक़ी था वह कसर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने आकर पूरी कर दी है.

पंकजा मुंडे संघर्ष यात्रा को संबोधित करते हुये और लाखों लोग उनका भाषण सुनते हुए देखे जासकते हैं (फोटो मैईशत)
लेकिन ऐनसीपी-कांग्रेस अब भी असमंजस में है. चूँकि चुनावों में विचारधारा नहीं जीत मायने रखती है और इसी फॉर्मूले पर सारी पार्टियां चलती हैं इसलिये चुनावी समर में कूदने से पहले एनसीपी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल कहते हैं कि ‘हम गठबंधन चाहते हैं, लेकिन अपने सम्मान से समझौता नहीं करना चाहते, जबकि एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक को इस बात का मलाल है कि 15 दिनों से कांग्रेस ने उन से बात नहीं की है जब कि वह साथ लड़ना चाहते हैं, लेकिन वह कहते हैं कि “अगर अकेले भी चुनाव लड़ना पड़ा तो हमारी तैयारी पूरी है”.
हालाँकि महारष्ट्र के पालक मंत्री एवं एनसीपी के वरिष्ट नेता जयंत पाटिल मईशत से कहते हैं कि “हम ने अभी अपना ज़ोर नहीं लगाया है,ना ही प्रचार अभ्यान शुरू किया है, सोशल मिडिया, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मिडिया में भी अभी हमारा बखान शुरू नहीं हुआ है, जब शुरू होगा तब जनता जान लेगी कि हमने उनके लिये किया किया है”।
ज्ञात रहे कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एनसीपी राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से आधी यानि 144 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। साल 2009 में एनसीपी 114 और कांग्रेस 174 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। वही कांग्रेस अपने 2009 के सीट बंटवारे के फॉर्मूले पर अड़ी है। 174 सीटों पर लड़ी कांग्रेस ने 82 सीटें जीती थीं, जबकि 114 सीटों पर चुनाव लड़के एनसीपी को 62 सीटों पर जीत मिली थी लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी दोनों का सफाया हो गया, जबकि ज्यादा सीटों पर लड़ने के बावजूद कांग्रेस को एनसीपी से भी 2 सीटें कम मिलीं इसी वजह से एनसीपी कांग्रेस पर ज्यादा सीटों के लिए दबाव बना रही है।
बीजेपी महाराष्ट्र के प्रवक्ता माधव भंडारी मईशत से कहते हैं “हमारे राष्ट्रिये अध्यक्ष का साफ़ कहना है कि अभी एनसीपी-कांग्रेस को सत्ता से हटाना है जिसके बाद ही फैसला करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा, वैसे महायुती का अभियान शुरू हो चूका है। हमारा गटबंधन जोर शोर से प्रचार की तय्यारियां कर रहा है। असल में हम विधान सभा में लोक सभा की रढ़निति पर काम नहीं कर रहे हैं बल्कि यहाँ हम बिल्कुल इश्यूज के आधार पर चुनाव लड़ रहे हैं”। यह पूछे जाने पर कि महायुति में शामिल रामदास अठावले अब नाराज़ नज़र आरहे हैं,भंडारी कहते हैं “वह हमेशा नाराज़ ही रहते हैं कियुंकी उनकी नाराज़गी का कोई मतलब ही नहीं होता, इस समय महारष्ट्र की जनता परिवर्तन चाहती है जो हम लेकर आयेंगे”।
दिल्चस्प बात तो यह है कि इस बार शिवसेना बाज़ी मारने के फिराक में है लोकसभा के पर्दर्शन से गदगदाई पार्टी विधानसभा में पार्टी सुप्रीमो उधव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है, एमऐनएस की दिनोदिन ख़राब होती हालत का फायेदा अब उधव को मिलने लगा है. नासिक जैसे इलाक़े में जहाँ एमऐनएस का प्रदर्शन अच्छा रहा था वहां पार्टी के नेता और कार्यकर्ता शिवसेना में शामिल हो रहे हैं. और शायद यह पहली बार है जब मराठी मुसलमानों की बड़ी संख्या पार्टी के लिये काम कर रही है. शिवसेना के प्रवक्ता मिलिंद तुलस्कर कहते है “महायुती के बीच यह तय पाया है कि जिसकि ज़ियादा सीट होगी मुख्यमंत्री उसी का होगा और हम ज़ियादा सीटों पर लड़ रहे हैं इसलिये हमें उम्मीद है कि हमारा मुख्यमंत्री होगा लेकिन पार्टी सुप्रीमो उधव ठाकरे ने अपने को मुख्यमंत्री की दौड़ से वंचित रखा है, उन्हों ने साफ़ कहा है की वह मुख्यमंत्री के दौड़ में शामिल नहीं हैं ऐसे में समय आने पर ही कुछ कहा जा सकता है”।
अतः वरिष्ट पत्रकार एवं Those 9 Days के लेख़क वेंकटेश राघवन कहते हैं “अभी से ही जिस प्रकार के आंकड़े लाये जा रहे हैं और जिस तरह का अनुमान लगाया जा रहा है वह सही नहीं है, लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में बहुत अंतर होता है, महाराष्ट्र में मराठा लाबी, दलित समाज और मुस्लिम समाज जिसके साथ होगा सरकार उसी की बनेगी.इस समय रामदास अठावले नाराज़ हैं यानि दलित समाज जो महारष्ट्र में २६ प्रतिशत है महायुती से खफा है, कांग्रेस ने मराठा और मुसलमानों को आरक्षण का लालीपॉप देकर अपनी ओर खींचने की कोशिश की है और चुनाव प्रभारी नारायण राणे को बनाकर एक अच्छा संदेश दिया है। मुख्यमंत्री पृथ्वी राज चव्हाण का कार्यकाल भी अच्छा रहा है और उनकी साफसुथरी छवी बनी हुई है जिसका अच्छा असर कांग्रेस पर पड़ने वाला है.”।
वह कहते है “बीजेपी के १०० दिन देख कर जनता अब कुछ और मन बना रही है और महाराष्ट्र की सतह पर उसे कांग्रेस में ही अच्छाई नज़र आरही है, इसलिये ऐसे में यह कहना कि मुख्यमंत्री कौन होगा थोड़ा कठिन है.”
लेकिन यह एक हकीक़त है कि चुनावी दंगल में हर कोई मंगल मना रहा है परंतु जनता किसके साथ है अब भी केवल अटकलें ही लगाई जा रही हैं यह तो चुनाव के नज़दीक आने के बाद ही पता चलेगा कि कौन पद प्रधान है और कौन पैदल ही प्रस्थान कर जाने वाला है.लेकिन क्या आप ने पंकजा मुंडे का भगवानगड का भाषण सुना है यकीनन बहुत सारे लोगों ने नहीं सुना होगा कियुंकी महाराष्ट्र के छोटे से गांव में जब ये भाषण हो रहा था तो वहां की जनता केवल आंसू बहा रही थी पंकजा के शब्द हर दिलों को झिंझोड़ रहे थे और वह कबीर की बानी में सभो का आपा खोरही थीं. जनता के साथ उनके बाडीगार्ड भी अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रहे थे. माहौल इतना भावुक था कि लोग सिर्फ ताई को सुन रहे थे.
शायद ये भगवानगड का भाषण ही था जिसने विधर्ब और मराठवडा को पंकजा का मोहित कर दिया और लोग यह कहने लगे कि पंकजा ताई को उनका हक़ मिलना चाहिये और जो विरासत गोपीनाथ मुंडे छोड़ गये हैं उसपर केवल पंकजा का अधिकार होना चाहिये.
फीनिक्स फाउंडेशन के चेयरमान बीजेपी के पूर्व एमएलसी और गोपीनाथ मुंडे के क़रीबी सलाहकार पाशा पटेल मईशत से कहते हैं “पंकजा का जनाधार पुरे महाराष्ट्र में है राज्य के ८० विधान सभा क्षेत्रों में पंकजा का असर है और वह वहाँ के मतदाताओं को प्रभावित कर सकती हैं कियूंकि जिस प्रकार मुंडे जी जननेता थे और जनता जनार्धन उन्हें पसंद करती थी उसी प्रकार पंकजा का मामला है और अभी तो उनके साथ लोगों कि सहानुभूति भी है. महाराष्ट्र का ओबीसी समाज पंकजा के साथ है और वह ओबीसी वोट ले सकती हैं”.
यह पूछे जाने पर कि क्या पंकजा महाराष्ट्र की पहली महिला मुख्यमंत्री बन सकती हैं पटेल कहते हैं “ पंकजा के अंदर मुख्यमंत्री बन्ने का हर गुण मौजूद है, वह जन नेता हैं,युवापीड़ी उन्हें पसंद करती है राजनीति घराने के साथ ही वह पड़ी लिखी और सुलझी हुई महिला हैं हर एक की बातों को सुनना और उनके समस्याओं का समाधान करना भी उन्हें आता है लेकिन यह पार्टी पर निर्भर है कि वह किसे मुख्यमंत्री बनाती है.”
अल्बत्ता पाशा दबे लफ़्ज़ों में यह भी कह जाते हैं कि चूँकि पंकजा नई पीड़ी की हैं इसलिये शायद उन्हें पुराने लोग पसंद नहीं है वह लोग जिन्हों ने उनके पिता गोपीनाथ मुंडे जी के साथ काम किया था अब पंकजा के गुरुप में नहीं हैं शायद जनरेशन गैप है इसीलिये अब उनके नये सलाहकार नई पीड़ी के है और टीम भी नये लोगों है.
लेकिन पंकजा के चचेरे भाई धनंजय मुंडे की ओर से कुछ रोज़ पहले हुये तूतू मैं मैं का जवाब देते हुए पाशा कहते हैं “ पंकजा ने अपने भाई का जो जवाब दिया वह बिल्कुल सही था कियुंकि धनंजय सोवार्गिये मुंडे जी के नाम पर राजनिति करना चाहते थे वह सीबीआई जांच के नाम पर अपनी राजनितिक रोटी सेंक रहे थे जिसका जवाब देकर पंकजा ने कई लोगों को चुप करवा दिया है.यह बात भी इस बात का सुबूत है कि पंकजा राजनीति का पूरा शुद बुद रखती हैं और हर प्रकार से एक योग्य राजनेता हैं.”