वज़हुल कमर, Maeeshat News
मदीना : रमजान अरबी कलैंडर के हिसाब से नौवां महीना होता है और 12 महीनों में सब से ज्यादा पवित्र महीना माना जता है। कुछ ओलमाओं का मान ना है कि अरबी का शब्द ‘रम्ज़’ से रमजान बानाया गया है जिस का अर्थ होता है मिटाना ख़त्म करना यानी ये महीने अपने गुनाहों को धोने, ख़त्म करने कि होती है.
इसी महीने में कुरआन अवतरित हुई इस महीने में उमरा करने को एक हज के सवाब के बराबर बताया गया है. आप को बता दें कि रमजान एक महीने का नाम है और उस महीने में उपवास करने को ही रोज़ा रखना कहते हैं. ये रोजे 29 या 30 दिनों के होते हैं यानी चाँद देख कर पहला रोज़ा रखा जाता है और एक महीने बाद फ़िर जिस दिन चाँद दिख गया उसके दूसरे दिन रोज़ा न रख कर ईद मनाते हैं.
प्रवासी मुसलमान इस दिन को याद कर के बहुत खुशी जाहिर करते हुवे कहते हैं. अगले साल परिवार के साथ के साथ थे बहुत अच्छा लगा हम आप को बताते चलें कि इस रमजान हम ने सऊदी के सब से पवित्र और शांति के शहर मदीना में चक्कर लगाया. जहाँ कुछ लोग रेयाद दमाम और जीजान जैसे जगहों से मदीना सिर्फ़ इस लिए आये थे कि वो पहला रोज़ा मस्जिद अल नब्वी में खोले पूछने पर कहते हैं.
यहाँ आने के लिए पैसा तो बहुत खर्च कर के आया पर यहाँ का मज़ा ही कुछ और है हनीफ़ जो गुजरात से हैं कहते हैं मैं हर साल रमजान भर ईफ्तार मस्जिद अल नब्वी में ही करता हूँ वो 12 साल से यही किसी कफील का दुकान देख रेख करते हैं उनका कहना है कि जिस मुसलमान ने मदीने में ईफ्तार नही किया समझो उसने दुनिया नही घूमी बहुत सुकून मिलता है यहाँ पर और एक परिवार को छोड़ कर आया हूँ. यहाँ लाखों परिवार के साथ ईफ्तार कर रहा हूँ ये भीड़ मुझे मेरे घर की याद नही आने देती.
आगे जाने पर हमारी मुलाकात मोहम्मद जावेद और ऐजाज खान से हुई जो दोनों सीवान बिहार के थे उन से बात कर के ऐसा लगा जैसे पूरे प्रवासियों के दिल की बात जान गये हों ये दोनों पिछले 15 साल से मदीना में रहते हैं और अच्छी कंपनी में काम करते हैं इन्होंने ने बताया की एक लोकल न्यूसपेपर के अनुसार यहाँ एक दिन के ईफ्तार का ख़र्च 6 लाख 70 हज़ार डॉलर सऊदी हुकूमत ख़र्च करती है इस के इलावा मदीने का गरीब से गरीब सऊदी भी हर साल पूरे रमजान भर लोगों को ईफ्तार कराने में लाखों ख़र्च करते हैं दोनों हाथों से लुटाते हैं उनके छोटे छोटे बच्चे आप के लिबास नही देखते आप का रंग नही देखते बल्कि अपने घर के बुजुर्गों के हाथ के तरह आप का हाथ पकड़ कर जिद करते हैं कि अल्लाह के वास्ते आज़ हमारे साथ ईफ्तार कर लीजिए.
अभी बच्चे ने हाथ छोड़ी नही होती है कि दूसरे सऊदी का बच्चा अपने साथ ईफ्तार करने की जिद करता मुझे वो बात याद आ गई सच में दुनिया में ऐसी जगह नही होगी मदीने के लोगों में कुछ तो ख़ास है ऐसे ही हमारे प्यारे नबी ﷺ यूँ ही तो मदीने को पसंद नही किया होगा.
मैंने जावेद भाई से पूछा अच्छा इतना ख़र्च करने पर तो ये कंगाल हो जाते होंगे उन्होंने मुझ से उल्टा सवाल पूछ दिया ये बताईये दो मोटरसाईकल आप के पास है एक को रोज़ चलाते हैं दूसरे हो हाथ तक नही लगाते कुछ साल बाद जल्दी कौन ख़राब होगी मेरा जवाब था जो रखी होगी उसके सड़ने गलने की उम्मीद ज्यादा होगी फ़िर तपाक से जावेद भाई बोले इसी तरह अल्लाह के राह में ख़र्च करने से घटता नही और बढ़ता है.
मग़रिब की नमाज़ ख़त्म कर के मैं इन दोनों के साथ हो लिया फ़िर मैं ने चलते चलते पूछा बड़ी मुश्किल होती होगी रोज़ा रह कर लोगों का धूप में काम करना फ़िर उन्होंने कहा नही कुछ ख़ास नही क्योंकि मुस्लिम दिन में खाली हुक पेट होते हैं और रात को तरावी पढ़ते हैं इस लिए से ध्यान में रखते हुवे सऊदी हुकूमत ने 98 कानून बनाया जिस के अनुसार रमजान में कोई कंपनी एक दिन मे 6 घंटा से ज्यादा काम नही करवा सकती और इसका लाभ गैर मुस्लिम को भी दिया जाता है.
जिस से वो भी खुश रहते हैं और हरम छोड़ कर सभी जगह ईफ्तार में गैर मुस्लिम भी होते हैं और मिलजुल कर ये पर्व मनाते हैं.
थोड़ी आगे जाने पर देखा बहुत सारे लोग नये नये ट्रेवल बैग ले कर उलट पुलट कर रहे हैं मैं ने फ़िर पूछा ये लोग कौन हैं इस बार ऐजाज भाई ने चुप्पी तोड़ी ये सभी लोग रमजान में अपने घर जाने वाले लोग हैं जिन के खुशी का कोई ठिकाना नही परिवार के साथ पर्व मानने की बात ही कुछ और होती है. ये लहजा थोड़ा दर्द भरा था क्योंकि ऐजाज भाई कई सालों से इस लिए घर नही गये थे ताकि अच्छे ख़ासे पैसे कमा कर बच्चों को अच्छे यूनिवर्सिटी से तालीम हासिल करा सके.
परिवार के साथ रमजान न बिताने का दर्द कहीँ न कहीँ ऐजाज भाई की आँखों में दिख रहा था. इस ऐजाज खान जैसे लाखों प्रवासियों का मन तो करता है ये पाकीजा रमजान का महीना परिवार के साथ मनायें पर लाखों प्रवासियों के अरमान जिम्मेदारियों के भेंट चढ़ जाती है ये वो दर्द है जिसे हर प्रवासी सहते हैं रमजान के सिवा दूसरे पर्व में भी प्रवासी ऐसे तड़पते है उड़ कर अपने वतन चले जाने को….