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प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा: पड़ोसी देश के साथ नए युग की शुरूआत

by | Jul 4, 2025

रंजीता ठाकुर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में संपन्न हुई नेपाल यात्रा, 3—4 अगस्त 2014, दोनों देश के बीच द्विपक्षीय रिश्तों के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होने वाला दौरा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की 17 साल उपरांत की गई नेपाल यात्रा थी। इससे पहले वर्ष 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने नेपाल यात्रा की थी। उसके बाद से नेपाल की ओर से भारत से शीर्ष स्तर पर दौरे को लेकर अनुरोध होता रहा। लेकिन यह एक हकीकत में नहीं बदल पाया। हालांकि इस दौरान भी नेपाल के प्रधानमंत्री भारत आते रहे। भारत के साथ उनके रिश्ते सामान्य रहे। लेकिन दौरे से जो करीबी लाई जा सकती थी उसको लेकर थोड़ी सुस्ती जरूर दिखी। इतने लंबे समय के बाद जब प्रधानमंत्री वहां गए तो ऐसा लगा जैसे नेपाली शासन, प्रशासन और जनता इन सभी वर्षो के इंतजार की बेसब्री और दिए जाने वाले समर्थन, सहयोग को एक पल में देने को बेताब थी।

प्रधानमंत्री का नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोईराला ने प्रचलित मान्यता और प्रथा को तोड़ते हुए न केवल एयरपोर्ट पहुंचकर स्वयं स्वागत किया बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां गए वहां पर उनका अभूतपूर्व स्वागत हुआ। उन्होंने नेपाल की संविधान सभा को भी संबोधित करने का मौका मिला। जर्मनी के बाद ऐसा करने वाले वह दूसरे विदेशी शासनाध्यक्ष बन गए। इस अवसर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यर्थ नहीं जाने दिया। उन्होंने नेपाल के साथ भारत के रिश्ते को लेकर न केवल भूतकाल और वर्तमान की बात की बल्कि यह भी कहा कि दोनों देश के बीच रिश्ते ऐसे हैं कि एक दूसरे के बिना वह पूरे नहीं होते हैं। उन्होंने नेपाल की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह एक अच्छा कदम है कि कुछ दल शस्त्र छोड़कर शास्त्र की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने नेपाल की ओर से बनाए जा रहे नए संविधान को आने वाले कल के लिए एक प्रेरक और ऐतिहासिक कदम करार देते हुए कहा कि दुनिया इससे सीख लेगी। उन्होंने नेपाल आने को अपने लिए एक अप्रीतम मौका कहते हुए हर नेपाली जनता के दिल में जगह बनाने का प्रयास किया। इसमें वह सफल भी रहे।

उन्होंने कहा कि उन्होंने सोमनाथ की धरती पर जन्म लिया। राष्ट्रीय राजनीति में काशी से प्रवेश किया और आज वह पशुपतिनाथ जी के चरणों में आए हैं। उन्होंने दिलों को जोड़ने वाले एक अन्य वाक्य में कहा कि वह नेपाल की उस बहादुर जनता को सलाम करते हैं जिसने भारत की आजादी के लिए अपना बलिदान दिया है। उन्होंने नेपाल को 10 हजार करोड़ नेपाली रूपये की क्रेडिट लाइन देने का भी ऐलान किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल में हाईवे बनाने में सहयोग देने से लेकर उन्हें सूचना तकनीक क्षेत्र में सहयोग करने के साथ ही बिजली उत्पादन क्षमता को दोगुना करने में सहयोग का इरादा भी संविधान सभा संबोधन में किया। उनके उदबोधन का न केवल सत्ता पक्ष बल्कि अन्य सभी दलों के सदस्यों ने भी मेज थपथपाकर स्वागत किया। यह पहली बार था जब नेपाल के सभी दल एकमत से किसी भारतीय नेता के उदबोधन पर सहमत दिखे।

यह एकरूपता उनकी नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कुमार कोईराला, यूसीपीएन एम नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड, सीपीएन यूएमएल चेयरमेन केपी ओली, नेपाली कांग्रेस नेता शेर बहादुर देउबा, आरपीपी एन के चेयरमेन कमल थापा और मधेसी नेताओं से मुलाकात में भी दिखी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी इस यात्रा को एक पक्ष की जगह समग्र नेपाल से जोड़ने का प्रयास किया। यही वजह है कि उन्होंने संविधान सभा के संबोधन के समय एक प्रचलित कहावत जिसमें कहा जाता है कि पहाड़ का पानी और जवानी किसी के अपने काम नहीं आती है का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत और नेपाल को अब इस मान्यता को बदलना होगा। दोनों को मिलकर कार्य करना होगा। उन्होंने पहाड़ शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया क्योंकि वह जानते हैं कि नेपाल में भी भारत के उत्तराखंड की तरह पहाड़ और मैदान के लोगों के बीच खींचतान की राजनीति है। उन्होंने अपनी यात्रा को सभी वर्ग से जोड़ने का एक और सफल प्रयास किया। उन्होंने अपने उदबोधन में समग्र नेपाल की बात की। जब​ किसी ने उनसे पूछा कि उन्होंने अपने संबोधन में एक बार भी मधेसी शब्द या वर्ग का उल्लेख नहीं किया। जबकि वह लोग भारत के अधिक करीब है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके जवाब में कहा कि भारत संपूर्ण नेपाल को एक राष्ट्र की तरह देखता ही नहीं है बल्कि उसे अक्षुण्ण बनाए रखने के प्रति कृतसं​कल्पित भी है। ऐसे में वह ऐसा कोई शब्द अपने शब्दकोष में शामिल ही नहीं कर सकता है जो वर्गो को अलग करने वाला हो। उन्होंने कहा कि एक वर्ग के बिना दूसरा अधूरा है। इससे उन्होंने एक साथ पहाड़ और मैदान दोनों वर्गो को जीतने में सफलता हासिल की। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की नेपाल यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री के सम्मान में न केवल नेपाली प्रधानमंत्री बल्कि राष्ट्रपति रामबरन यादव ने भी भोज रखा। उन्होंने इन दोनों अवसरों को भी सदुपयोग किया। उन्होंने इन भोज के दौरान वहां के नेताओं की शंकाओं का व्यक्तिगत जवाब देकर यह साबित करने का प्रयास किया कि भारत का शीर्ष स्तर तक नेपाल की चिंताओं को लेकर सदैव उपलब्ध है। जब प्रधानमंत्री नेपाल पहुंचे तो उन्होंने अपने काफिला के रास्ते से ही लोगों के दिल में जगह बनानी शुरू कर दी। वह अपने काफिला में कई जगह रूके और लोगों से मिले। यह आत्मीय मिलन ही दोनों देशों की शक्ति है इसे उन्होंने प्रधानमंत्री सुशील कोईराला के भोज के दौरान वहां के प्रतिनिधियों के बीच प्रमुखता से रखा भी। नेपाल को प्रधानमंऋी यह संदेश देने में पूरी तरह सफल रहे कि वह पड़ोसी मुल्कों और विशेषकर नेपाल के साथ रिश्तों को लेकर किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। इसका प्रमाण उन्होंने अपनी यात्रा से पहले ही उस समय दे दिया था जब उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में नेपाल सहित सभी दक्षेस देशों के प्रमुखों को आमंत्रित करने के अलावा 23 साल से लंबित भारत—नेपाल ज्वाइंट कमीशन की बैठक को हरी झंडी दी। इसके लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज स्वयं नेपाल गईं। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा के शुरूआती संकेत भी थे।

दोनों देश के बीच रिश्ते अपने चरम पर जाए इसके लिए नरेंद्र मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान सभी संभव प्रयास किये। उन्होंने न केवल सत्तारूढ़ दल बल्कि वहां के सभी प्रमुख पार्टियों से मुलाकात की। इसमें वामपंथी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड भी शामिल थे। नेपाल के वाम दलों को चीन के नजदीक माना जाता रहा है। ऐसे में वाम दलों के नेताओं से उनकी मुलाकात अहम है। भारत अपने इस पड़ोसी मुल्क के साथ करीब 1751 किमी लंबी सीमा साझा करता है। ऐसे में उसके लिए यह जरूरी है कि वह वाम दलों को विश्वास में ले। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसमें पूरी सफलता भी पाई।

उनकी यात्रा किस कदर सफल रही इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी यात्रा के दौरान कई ऐतिहासिक समझौते हुए। यह आपसी करार दोनों मुल्कों को और नजदीक लाएंगे। इनमें सबसे अहम है 5600 मेगावॉट की पंचेश्वर पनबिजली परियोजना। नेपाल की क्षमता 83000 मेगावॉट बिजली पैदा करने की है। भारत इसका लाभ लेना चाहता है। यही वजह है कि नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोनों देश इस क्षेत्र में एक दूसरे का अंधेरा दूर कर सकते हैं। इस परियोजना पर करीब 30 हजार करोड़ रूपये का अनुमानित खर्च आएगा। यह प्रोजेक्ट एक साल में शुरू करने के साथ ही इसके लिए तेजी से कार्य करने को लेकर एक प्राधिकरण बनाने पर भी सहमति बनी। इसके साथ ही भारतीय कंपनी जीएमआर भी यहां पर 900 मेगावॉट का प्लांट लगाना चाहती है। इस दिशा में भी तेजी से बढ़ने को लेकर दोनों देश के बीच सहमति बनी। इस योजना से भारत को 88 प्रतिशत बिजली मिलेगी। जबकि नेपाल को 12 प्रतिशत बिजली मुफत मिलेगी। भारत ने नेपाल को जनकपुर, बारा क्षेत्रा और लुंबिनी के विकास और लुंबिनी को बुद्धा सर्किट से जोड़ने पर भी सहमति बनी। भारत ने नेपाल के सभी दलों की भावनाओं को देखते हुए वर्ष 1950 की संधि में सुधार को लेकर भी सहयोग का आश्वासन दिया। इससे खासकर वाम दलों के निक्ट पहुंचने में भारत को मदद मिली। इसके तहत कई पदार्थो के कारोबार पर अलग असर पड़ता है।

दोनों देश सीमा कार्य समूह या बाउंडरी वर्किंग ग्रुप बनाने पर भी सहमत हुए। यह सीमा पर पिलर और अन्य चिन्हन आदि से जुड़े मामलों को देखेगा और उनका हल निकालेगा। दोनों देश ने विदेश सचिव स्तर पर कालापानी और सुस्ता सहित अन्य सीमा मामलों को सुलझाने के लिए ज्वाइंट कमीशन के निर्देश को भी दोनों देशों ने सराहा और उसके अनुरूप कार्य करने पर सहमति दिखाई। भारत ने सीमा मानच़ित्र को जल्द पूरा करने पर जोर दिया। इस पर नेपाल ने सकारात्म्क संदेश दिया। देानों देशों ने द्विपक्षीय रिश्तों को आगे ले जाने के लिए एक ऐसे गैर सरकारी प्रबुद्ध और नामचीन लोगों तंत्र की भी वकालत की जो द्विपक्षीय रिश्तों को आगे ले जाने में सहायक हो। यात्रा के दौरान एक अन्य महत्वपूर्ण बिंदु पर सहमति बनी। दोनों देश प्रत्यापर्ण संधि को अंतिम रूप देने पर सहमत हुए। इसके लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश भी दिए गए। भारत ने नेपाल के साथ पुलिस अकादमी को लेकर भी आपसी समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किये। इसके तहत भारत अपने इस पड़ोसी देश को पुलिस आधुनिकीकरण और उच्च क्षमता ट्रेनिंग में मदद देगा। भारत ने इस अवसर पर तराई क्षेत्र में सड़को के निर्माण के दूसरे चरण की शुरूआत के साथ ही भारत—नेपाल के बीच पहले से घोषित पांच रेलवे लाइन पर भी जल्द कार्य शुरू करने पर सहमति दिखाई।

भारत ने पर्यटन के क्षेत्र में भी नेपाल को हरसंभव सहयोग का वादा किया। भारत ने नेपाल की ओर से 6 अन्य सड़कों के निर्माण मे भी सहयोग पर भी सकारात्म्क रवैया अपनाने का भरोसा दिया। दोनों देश के बीच पोस्टल रोड बनाने के अलावा तराई रोड प्रोजेक्ट दो शुरू करने पर भी सहमति बनी। भारत ने नेपाल तक पेट्रोलियम पदार्थो की तेज और बाधा रहित पहुंच के लिए रक्सौल—अमलेखगंज पाइपलाइन प्रोजेक्ट को शुरू करने पर सहमति जताते हुए इसे अगले चरण में काठमांडू तक ले जाने को लेकर भी प्रतिबद्धता दिखाई। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबंधित अधिकारियों को रेलवे, सड़क के साथ ही कारोबार, आवागमन समझौतों पर तेजी से आपसी समझौता पत्र पर हस्ताक्ष्रर करने के निर्देश दिए। भारत ने नेपाल की ओर से जनकपुर, भैरहवा और नेपालगंज के बीच तीन अतिरिक्त् वायु प्रवेश मार्ग उपलब्ध कराने, पोखरा—भैरहवा—लखनउ के बीच सीधी उड़ान सेवा शुरू करने के अनुरोध पर भी तेजी से कार्य करने का भरोसा दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबंधित अधिकारियों को इस पर अगले छह महीने में समुचित कदम उठाने के निर्देश दिए। दोनों देश ने सीमा पार बिजली लाइनों के विस्तार के लिए भी कर्य करने पर सहमति दर्शाई।

भारत ने नेपाल के अनुरोध पर उसे सिंचाई और जल संसाधन के अन्य क्षेत्रों में मदद का वादा किया। कुल मिलाकर इतने अनुबंध, करार और आपसी समझौता से भारत ने यह साफ कर दिया कि वह नेपाल के साथ रिश्तों को एक नई उंचाई पर ले जाना चाहता है। यह यात्रा किस कदर सफल रही इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीनी मीडिया ने भी इसे सफलता से आगे की यात्रा करार दिया है। हालांकि अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार भी चीन का नाम नहीं लिया लेकिन कूटनीतिक क्षेत्रों में माना जा रहा है कि जिन क्षेत्रों में और जिस तरह के करार भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली अधिकारिक नेपाल यात्रा के दौरान हुए हैं वह यह साबित करने वाले हैं कि भारत ने इस चरण में नेपाल में उपस्थिति दर्ज कराने के मामले में उससे आगे निकलने में सफलता ​हासिल कर ली है।

नेपाल भारत रिश्तों को लेकर कहा जाता है कि यह रोटी—बेटी वाला रिश्ता है। इसकी वजह यह है कि भारत का नेपाल के साथ पड़ोसी का रिश्ता तो है ही, यह धार्मिक, सांस्कृतिक रूप से भी जुड़े हुए हैं। दोनों के बीच द्विपक्षीय रिश्ते किस कदर मजबूत है इसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि दोनों देश के बीच 60 साप्ताहिक उड़ान है। दोनों देश के बीच करीब 25 ऐसे मंच या स्तर है जिससे दोनों देश के बीच द्विपक्षीय बातचीत होती है। भारत का करीब 4.7 बिलियन का नेपाल में निवेश है। नेपाल में भारत का करीब 47 प्रतिशत एफडीआई है। भारत में करीब 6 मिलियन नेपाली वर्कर हैं। भारत करीब 450 विकासपरक प्रोजेक्ट में नेपाल में शामिल है। नेपाल के पर्यटन में करीब 20 प्रतिशत हिस्सेदारी भारत की है।वहीं, वहां के पर्यटन में शामिल होने वाले करीब 40 प्रतिशत लोग वाया भारत वहां जाते हैं। भारत करीब 3 हजार नेपाली छात्रों को छ़ात्रवृति देता है। इसमें इजाफा को लेकर भी दोनों देश के बीच बातचीत हुई है।

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