वित्तीय बाजारों में वैश्विक अनिश्चितता हमारी अर्थव्यवस्था को लगातार प्रभावित कर रही है। हाल में किये गये सुधारों और सरकारी नीतियों से उभरकर सामने आ रही स्पष्टता से विदेशी संस्थागत निवेश वृद्धि हुई है। इससे पूंजी बाजार को बढ़ावा मिला है, लेकिन अभी भी पूंजी बाजार की व्यापकता एक चुनौती बनी हुई है और सेंसेक्स में फिर से उछाल के बावजूद खुदरा निवेशक इससे दूरी बनाए हुए है।
भारत में वित्तीय क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण हो गया है, लेकिन इसमें भागीदारी अभी भी सरल नहीं है। स्थिति यह है कि बड़े पैमाने पर बैंकिंग में और कुछ हद तक बीमा क्षेत्र में भागीदारी के अलावा किसी और वित्तीय सेवा में आम जन की भागीदारी अधिक नहीं है।
भारत में बचतें और निवेश राष्ट्रीय व्यावहारिक आर्थिक अनुसंधान परिषद द्वारा वर्ष 2011 में कराए गये सर्वेक्षण से पता चला है कि देशभर में जितने घर-परिवार हैं, उनमें से 11 प्रतिशत भी कम निवेश करते हैं और बाकी केवल बचत करते हैं तथा पूंजी, म्युचुअलफंड, स्टॉक और शेयर, सरकारी बांडों और कंपनियों के बांडों में उनकी प्रतिभागिता नहीं है।
ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया जैसे विकसित देशों में लगभग 40 प्रतिशत लोग पूंजी बाजार में प्रतिभागी हैं और जर्मनी, ब्रिटेन और यहां तक कि हंगरी जैसे देश भी खुदरा निवेश के मामले में भारत से काफी आगे हैं। चीन में 10 प्रतिशत से अधिक लोग पूंजी बाजारों में निवेश करते हैं, जबकि भारत में यह प्रतिशत केवल 1.3 है, जिसका मतलब है कि इस क्षेत्र में अभी भारत को बहुत कुछ करना है।
बचतें और निवेश, ज्यादातर जोखिमों के प्रति हमारी सोच पर निर्भर करते हैं। हम भारतीय लोग बचतों के मामले में और अपनी बचतों को निवेश करने के मामले में आमतौर पर जोखिम से बचना चाहते हैं। अधिकतर भारतीय आमतौर पर अपनी मूल राशि को सुरक्षित रखना चाहते हैं। इसलिए वे मूलधन पर कम आमदनी या बिना लाभ के केवल सुरक्षित रखने में विश्वास रखते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पूंजी शेयरों जैसे विकल्पों में, जिनसे कुछ आमदनी हो सकती है, उनकी भागीदारी कम है।
जो लोग पूंजी बाजार से दूरी बनाए रखते हैं, वे सोने और रियल स्टेट में पूंजी लगाते हैं, जिनके बारे में समझा जाता है कि वे स्वाभाविक रूप से मुद्रास्फीति को रोकते हैं। यही कारण है कि भारतीय कंपनियों को नकद निवेश के लिए मुख्य रूप से विदेशी संस्थागत निवेशकों पर निर्भर करना पड़ता है। लेकिन यह प्रवृत्ति देश में संपदा सृजन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
इस परिदृश्य को, पूंजी और ऋण बाजारों में घरेलू खुदरा निवेशकों की भागीदारी को बढ़ाकर बदला जा सकता है, जिससे औद्योगिक क्षेत्र के लिए पूंजी की निरंतर उपलब्धता बनी रहेगी। हालांकि जोखिम उठाने की सोच को एकदम बदला नहीं जा सकता, लेकिन अन्य उपाय किये जा सकते हैं, जैसे वित्तीय व्यवस्थाओं की आम लोगों को अधिक से अधिक जानकारी देना तथा प्रणालियों और प्रक्रियाओं में सुधार करना, ताकि खुदरा निवेशकों में विश्वास की भावना जागे।
खुदरा निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने के उपाय
नियामक व्यवस्था को मजबूत बनाना
भारत के पूंजी बाजार नियामक – सेबी, यानि भारतीय प्रतिभूति एवं विनियमन बोर्ड के एजेंडे में सबसे बड़ा मुद्दा निवेशकों के हितों के संरक्षण से संबंधित है। सेबी के अध्यक्ष यू.के. सिन्हा का कहना है कि प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) के दाम लालच के कारण ऊंचे निर्धारित करने से छोटे निवेशक पूंजी बाजारों से दूर चले जाते हैं। उनके विचार इन तथ्यों पर आधारित हैं कि पिछले तीन वर्षों में जितने भी पब्लिक इश्यू बाजार में आए हैं, उनमें से दो तिहाई इश्यू बाजार की सामान्य गिरावट के लिए समायोजन के बावजूद लगातार अपने इश्यू मूल्य से भी नीचे के मूल्य पर आ गए। 9 जनवरी को मुंबई में पूंजी बाजार पर राष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए श्री सिन्हा ने कहा कि इस बारे में चिंता है कि भारतीय बाजार एक जुआघर जैसा है, जहां आप कुछ भी कर सकते हैं और करके निकल सकते हैं।
अब सेबी की योजना आईपीओ निवेशकों के लिए अपनी संशोधित सुरक्षा व्यवस्था के साथ आगे बढ़ने की है। यह प्रस्तावित सुरक्षा व्यवस्था ऐसे आईपीओ के मामले में लागू की जाएगी, जिसका मूल्य इश्यू के मूल्य से भी 20 प्रतिशत नीचे आ जाता है। इस प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था के पक्ष और विपक्ष में कड़ी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। आर्थिक धंधों में लगे लोगों का कहना है कि पूंजी लगाना जोखिम वाला क्रियाकलाप है। जब चीजें ठीक तरह से चलती हैं, तो फायदा भी बहुत होता है, इसलिए पूंजी बाजार से आमदनी के बारे में कोई कैसे गारंटी दे सकता है। उनका कहना है कि यह पूंजी निवेश के मूल सिद्धांत के ही प्रतिकूल है। दूसरी ओर सेबी का कहना है कि पब्लिक इश्यू का मूल्य निर्धारण भारत में एक बड़ा मुद्दा है और इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि पूंजी बाजार में आईपीओ निर्धारण को चालबाजियों से मुक्त रखा जाए।
सेबी ने एक अत्यधुनिक निगरानी प्रणाली की व्यवस्था भी कायम की है, जिसमें निवेशकों की परेशानियों से संबंधित सौ से भी ज्यादा शिकायतें रोज मिलती हैं। सेबी ने एक इंवेस्टर हैल्पलाइन भी शुरू की है, जो इस समय 13 भाषाओं में है। निवेशकों की शिकायतों को दूर करने के लिए सेबी ने एक और पहल भी की है। उसने सेबी शिकायत निवारण प्रणाली – स्कोर्स भी शुरू की है,जिसमें निवेशक वेबसाइट पर ऑन लाइन से अपनी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं और समाधान ले सकते हैं।
बिना तामझाम वाले डीमैट अकाउंट
पूंजी बाजार में ट्रेड के लिए डीमैट अकाउंट होना जरूरी है, जहां शेयरों और अन्य प्रतिभूतियों को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से रखा जाता है। शेयर बाजार में अधिक से अधिक लोगों को निवेश के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से बिना किसी तामझाम वाले (no frills) डीमैट अकाउंट शुरू किये गये हैं। यदि निवेश की प्रतिभूतियों का मूल्य दो लाख रूपये तक है, तो इसे ऐसे खातों में रखा जा सकता है, यदि मूल्य दो लाख रूपये से अधिक हो जाता है, तो इस पर शुल्क लागू होंगे।
राजीव गांधी इक्विटी बचत योजना सरकार ने पूंजी बाजार में खुदरा निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए 2012 में राजीव गांधी इक्विटी बचत योजना की शुरू की है। इस योजना के अंतर्गत ऐसे निवेशक, जिनकी आय दस लाख रूपये वार्षिक तक है, पचास हजार रूपये तक का निवेश कर सकते हैं, जिस पर उन्हें आयकर में छूट भी मिलेगी। सेबी ने शेयर बाजार और संपदा प्रबंधन कंपनियों से कहा है कि वे ऐसे शेयरों, विनिमय फंडों और योजनाओं की सूची को अपने वेबसाइट पर डालें।
निश्चित आय प्रतिभूतियां किसी इक्विटी शेयर में पूरा धन लगाना जोखिम भरा काम हो सकता है। इस जोखिम से बचाव के लिए अलग-अलग शेयरों को देखना जरूरी है। निश्चित आय वाली प्रतिभूतियां इस दृष्टि से कारगर हैं। इस समय भारतीय ऋण बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों का वर्चस्व है, जो सुरक्षित है, लेकिन इन पर आमदनी बहुत कम होती है। दूसरी ओर यदि दुनिया के विकसित देशों से मुकाबला किया जाए, तो भारतीय बांड बाजार अभी परिपक्व नहीं हुआ है। मुंबई में पूंजी बाजार के बारे में हुई संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने बांड बाजार को विस्तार देने के लिए सरकारी सहायता की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि इसके लिए प्रोत्साहन और करों में राहत दी जानी चाहिए। मुद्रास्फीति सूचकांक से जुड़े बांड जारी करने के संबंध में भी सुझाव दिए गए, जो निवेशकों के लिए वित्तीय हानि से बचाव के अच्छे विकल्प हो सकते हैं।निवेशक शिक्षा और जागरूकता
पूंजी बाजार से जुड़े जोखिमों के बारे में निवेशकों को शिक्षित करना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। सेबी राष्ट्रीय प्रतिभूति बाजार संस्थान के माध्यम से वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम चला रहा है। रेडियो स्पॉट, टीवी कमर्शियल, लघु वृतचित्र और समाचार पत्रों में विज्ञापनों के माध्यम से निवेशकों में जागरूकता पैदा करने के लिए सेबी ऑडियो-विजुअल और प्रिंट मीडिया का भी इस्तेमाल करता रहा है। स्कूल शिक्षा में वित्तीय साक्षरता के बारे में पाठ्यक्रम को शामिल करने के लिए सेबी केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से भी विचार-विमर्श कर रहा है। लेकिन देश की विशाल आबादी और दूर-दूर तक फैले ग्रामीण क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए निवेशकों को शिक्षित करने के कार्य में अभी बहुत समय लग सकता है। नियामकों, शिक्षकों, एक्सचेंजों और वित्तीय कंपनियों के बीच सहयोग और ऑन लाइन प्रणाली की कनेक्टिविटी के विस्तार से इस कार्य में सफलता मिल सकती है।
वित्तीय समग्रता सरकार वित्तीय समग्रता पर बहुत जोर दे रही है, जिसके अंतर्गत बैंकिंग सुविधाओं तक पहुंच का विस्तार करने के अलावा इससे अंतत: एक ऐसा मंच तैयार होगा, जिससे वित्तीय साक्षरता को व्यापक बनाया जा सकेगा। देश में कुशल बैंकिंग सेवा और दूर-दराज तक इसकी पहुंच की सहायता से ही पूंजी बाजार में खुदरा निवेशकों की भागीदारी को बढ़ाया जा सकता है।