By Maeeshat News
पर्दा प्रथा का विरोध इस समय बहुत से देशों में हो रहा है. कई देश तो पर्दा यानी बुर्का, हिजाब, अबाईया व स्कार्फ़ पर प्रतिबन्ध भी लगा चुके हैं. भारत में भी सेक्यूलर मीडिया इस पर हमेशा वार करती रहती है. मीडिया ने हमेशा पर्दे और इस्लामी लिबास को स्त्रियों की दासता के रूप में पेश किया है.
लेकिन बात सिर्फ भारत तक ही नहीं है इस्लाम और औरतों की मुखालिफत हमेशा से होती रही है यही मुखालिफत हिज़ाब को ले कर यूरोप में भी हो रही है.
यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस ने मंगलवार को फैसला दिया है कि यूरोप में कंपनियां ऐसे कर्मचारियों को अपने यहां काम करने से रोक सकती हैं जो धर्म से जुड़े किसी भी संकेत को इस तरह के पहनकर आते हैं कि वह साफ तौर पर दिखे. हिजाब पहनकर दफ्तर आने वाली महिला कर्मचारियों से जुड़े मामले पर कोर्ट ने यह अपना पहला फैसला दिया है.
दरअसल, यह फैसला फ्रांस और बेल्जियम की उन दो महिलाओं से जुड़े मामले में संयुक्त रूप से दिया गया है कि जिसमें महिलाओं को इसलिए नौकरी से निकाल दिया गया था क्योंकि उन्होंने अपना हिजाब उतारने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, कि किसी कंपनी का अंदरूनी नियम जो किसी भी राजनीतिक, दार्शनिक और धार्मिक संकेत को पहनने रोक लगाता है, उसे सीधा भेदभाव नहीं माना जा सकता हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि किसी कस्टमर की इच्छा पर कंपनी ऐसे फैसले नहीं कर सकती. फैसले के अनुसार अगर कंपनी किसी भी प्रकार की ऐसी चीज़ों के पहनने पर पाबंदी लगाती है तो इसे भेदभाव नहीं माना जा सकता.