दानिश रेयाज,मुंबई
महाराष्ट्रा के महामहिम के शंकरनारायणन ने मराठा और मुसलमानों को पांच एवं अठारह प्रतीशत आरक्षण दिये जाने के सरकार के फ़ैसलों पर मुहर लगा दी है और राज्य भर में सर्कुलर भी जारी हो गया है लेकिन किया ये इतना ही आसान है जितना इसे कांग्रेस-ऐन सी पी सरकार समझा रही है.
कहते हैं कि जब नय्या डूबती है तो लोग तिनके का भी सहारा ढूंढते हैं इस समय महाराष्ट्रा में कांग्रेस-ऐन सी पी सरकार कुछ ऐसा ही कर रही है वह उस तिनके को ढूंड रही है जो उसकी नय्या पार लगा दे. बीते कुछ दिनों पहले ऐन सी पी के सुप्रीमो शरद पवार ने अपने मुस्लिम सिपहसालारों के साथ एक मीटिंग की जिसमे देश भर से समुदाय के लोग शामिल हुये. शरद पवार ने अपने भाषण में कहा कि “मैं समझता हूँ कि मुस्लिम समुदाय के साथ अन्याय हुआ है और उनको उनका हक़ नहीं मिला है लेकिन हम इस बात की कोशिश करेंगे कि उन्हें उनका हक़ मिल जाये.” शरद पवार जब ये कह रहे थे तो उन्हें यह एहसास था की यहाँ ऐसे लोग भी बैठे हैं जो इसे सकारात्मक नहीं लेंगे और यही हुआ जब प्रदेश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक इंस्टिट्यूट के प्रेसिडेंट डाक्टर जहीर क़ाज़ी ने कहा कि “पवार साहब! हम आपसे वैसी चीजें नहीं मांग रहे जिसमे क़ानूनी दुश्वारियाँ हों हम तो केवल उन फाइलों को पास करने की गुहार लगा रहे हैं जिन पर हमारा हक़ और जो आप की सरकार के पास कई बरसों से पड़ी हैं और आप के मंत्री उसपर अपना हस्ताक्षर नहीं कर रहे हैं.” डाक्टर क़ाजी जिस समय ये बोल रहे थे उस समय न सिर्फ ग्रहमंत्री आर आर पाटिल, शिक्षा मंत्री फैज़िया खान ऐवम मेडिकल शिक्षा मंत्री जीतेन्द्र अव्हाड़ वहां मौजूद थे बल्कि जिन सिपहसालारों के बल पर वो समाज को राम करने की चेष्टा कर रहे थे उनमें भी कई ऐसे थे जो सिर्फ ऐन सी पी की क्लास लेने की ही कोशिश कर रहे थे.
दरअसल जब से सेकुलरिज्म का निक़ाब सूडो सेकुलरिस्टों के चेहरों से उतरा है और भारत की जनता ने प्रगति,विकास,सुरक्षा एवं संरक्षा को अपना मुद्दा बनाया है उसी समय से पाखंडियों की नींद हराम हो गई है.यह सब जानते हैं की देश को सिर्फ खोखले नारों के साथ नहीं चलाया जा सकता,ना ही संप्रदायिकता का सहारा लेकर किसी को बहुत दिनों तक बेवकूफ़ बनाया जासकता है.लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद तुष्टिकरण की राजनीत करने वालों को यह अह्सास हो गया है कि देश का वोटर अब समझदार होगया है वो सिर्फ लोभ लुभावन से मानने वाला नहीं है. यही वजह है कि जब उत्तर प्रदेश के कछौछा शरीफ से आये मौलाना अशरफी ने शरद पवार से कहा की “अब आप हमें साम्प्रदायिकता से ना डराये,महाराष्ट्रा में होने वाले विधानसभा चुनाव में हमारे पास अब बहुत सारे विकल्प हैं, अब हम एम ऐन एस और शिवसेना को भी अपना वोट दे सकते हैं. लेकिन आप की पार्टी को इसलिये वोट देते हैं की आप से हमारा लगाव है.” तो शरद पवार ये बोलने पर मजबूर हो गये कि “आप लोग हमें किसी से डर कर वोट ना दें बल्कि हम तो आप का वोट आप की ख़ुशी से लेना चाहते हैं.”
असल में इस समय जो पार्टी सब से ज़ियादा दुविधा में है वो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ही है. प्रदेश में पार्टी के पास ऐसे लीडर नहीं हैं जो मराठी मानुस को पार्टी की तरफ झुका सकें. शिवसेना-एम ऐन एस तो मराठी कार्ड खेलती ही है जबकि उसका मराठा वोट बैंक महफूज़ भी है साथ ही कांग्रेस के पास जो रेवायती वोट था ऐन सी पी को उसी से हिस्सेदारी मिल रही थी लेकिन जब कांग्रेस ने भी मराठा कार्ड खेला और इसी के साथ महमूदउर रहमान कमिटी का गठन किया एवं उस रिपोर्ट के आधार पर मुस्लिम समुदाय को पाँच प्रतीशत आरक्षण दिया तो इसका थोडासा भी लाभ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नहीं ले सकी. शायद यही बात है जो उसे इस बात पर मजबूर कर रही है की वह हर समुदाय से मिले और उसे अपनी ओर आकर्षित करे.
वारिष्ट्र पत्रकार एवं समाज सेवी आलम रिज़वी कहते हैं “शरद पवार इन दिनों असमंजस में हैं वह यू पी ए में रहते हुए ऐन डी ऐ की मलाई खाना चाहते हैं.वह एक ओर नरेन्द्र मोदी से मिलते हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस में अपने गुर्गों के ज़रिया ऐसी हवा बनाते हैं कि कांग्रस ऐन सी पी का मिलन हो जाये और उन्हें संयुक्त पार्टी का मुखिया चुन लिया जाये. असल में इस समय दोनों पार्टियों की हालत ख़राब है और इस ख़राब हालत का सब से ज़ियादा असर शरद पवार पर पड़ने वाला है यही वजह है कि वह अब मुसलमानों को लुभाने में लगे हैं.”
पार्टी की हालत यह है कि बड़े नेता अब पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं शरद पवार के भतीजे महाराष्ट्रा के उपमुख्यमंत्री अजीत दादा पवार की पार्टी पर कोई पकड़ नहीं है ना ही बेटी सुप्रिया सुले ने प्रदेश के अन्दर अपना कोई आधार बनाया है. पार्टी कार्यकर्ताओं को भी लगता है कि आने वाला चुनाव ऐन सी पी के लिये अच्छा नहीं रहेगा, फलस्वरूप वह लोग भी अभी से ही अपनी दूसरी दुनिया सजाने में लगे हुये हैं. ऐन सी पी के बड़े नेता छगन भुज्बल कि पार्टी के साथ आँख मुचौली की खबर आरही है जब कि राजू शेट्टी ने पहले ही मुश्किलें बड़ा रखी हैं और सतारा एवं सांगली जैसे इलाकों में जहाँ पार्टी का मज़बूत आधार रहा है पार्टी की नय्या डूब रही है.
ऐसे में जब मुसलमान भी यह कहने लगे कि “आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुस्लिम युवकों की जितनी गिरफ़्तारी ऐन सी पी का गृहमंत्री रहते हुए हुई है उतना बी जे पी शासित राज्यों में भी नहीं हुई तो पवार साहब का मूड ख़राब ना हो ये सोचा भी नहीं जा सकता. और हुआ भी यही जब पंजाब से आये धर्म गुरु मुफ्तिये पंजाब फजलुर्रहमान हिलाल उस्मानी ने शरद पवार से कहा कि “हमारे समुदाय के पड़े लिखे जवानों को आप की हुकूमत आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार करती है और फिर वह कई बरसों बाद अदालत से बाइज्ज़त बरी होजाते है तो किया आप लोगों को किसी प्रकार का खेद नहीं होता. झूठे मुकदमो में जितने नौजवान महाराष्ट्रा की जेलों में बंद हैं उतने तो गुजरात में भी नहीं हैं जिसका नाम लेकर सेकुलर पार्टियाँ डराती हैं.” तो शरद पवार की नज़रें झुक गईं जबकि गृहमंत्री पानी का गिलास मंगाने पर मजबूर हो गये.
दरअसल अब मुस्लिम समुदाय भी यह समझने लगा है कि सेकुलरिज्म के नाम पर तमाम पार्टियाँ समुदाय को केवल मुर्ख बनाती रही हैं जबकि मराठा समाज को भी मराठी मानुस के नाम पर ठगे जाने का एहसास हो चूका है इस स्थिति में जो ज़मीन के नेता हैं वह अपनी ज़मीन लेकर फरार होना चाहते हैं कि कहीं ऐसा ना हो कि डूबती हुई कश्ती उनकी नय्या भी डूबा दे और वह दोबारा उबर ना सकें.
वैसे देखना यह है कि चुनाव आते आते पवार कौन कौन सी चालें चलते हैं और किन किन मोहरों को इस्तेमाल में लाते हैं. सियासी पंडित कहते हैं कि “पवार कौन सी चाल कब चलेंगे यह उनके वज़ीरों को भी नहीं मालूम होता वैसे भी सवतंत्र भारत के इतिहास में पवार जैसे सियासी शतरंज के ख़िलाड़ी बहुत ही कम पैदा हुए हैं. वह महत्वाकांक्षी तो हैं लेकिन उनकी महत्वाकांक्षाएं कभी कभी इतना दुःख दायक होती है कि खुद पवार भी अपना आंसू बहा नहीं पाते. महाराष्ट्रा में आने वाला चुनाव उनकी रही सही विरासत बचाएगा या वह भी “शहंशाह शाह आलम अज़ देहली ता पालम” वाली स्थिती में आजायेंगे कुछ कहा नहीं जासकता.
मुल्ला की अज़ान ओर, शहीद की अज़ान ओर ।
मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति शहीद मुहम्मद मुर्सी इस दुनिया को अलविदा कहकर अपने रब के पास पहुँच चुके हैं जहाँ हर इन्सान को अपने किए हुए हर एक काम का हिसाब किताब देना होता है इनकी आकस्मिक मौत पर पूरी दुनिया में शदीद रन्जो-गम महसूस किया गया। मुस्लिम समुदाय के कई वर्गों ने...