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औरंगाबाद मौलाना आज़ाद मिलेनियम कॉलिज आफ़ मैनेजमैंट में मईशत की जानिब से मआशी बेदारी प्रोग्राम

by | Jul 4, 2025

टोरस के मार्केटिंग हेड कुंतल कथावटे,डाक्टर शारिक निसार,प्रिंसिपल डाक्टर शेख़ सलीम

टोरस के मार्केटिंग हेड कुंतल कथावटे,डाक्टर शारिक निसार,प्रिंसिपल डाक्टर शेख़ सलीम

औरंगाबाद: अगर कोई ऐसा इदारा आता है जो लाखों लोगों से फुट जमा करे और जिन लोगों को फुट की ज़रूरत है उन को फ़राहम करे तो ये शरीयत की रोसे एक भलाई का काम है उस की ज़रूरत है और ऐसे इदारे होने चाहिऐं । मसला जब पैदा होता है जब ये इदारा ग़लत तरीक़ा से काम करते हैं । आप एक मौजूदा बैंक को देखें कि वो सौ दप्पर पैसे लेता है और सूद पर पैसे देता है हालाँकि उसका काम अच्छा है लेकिन इस का तरीक़ा ग़लत है। इस ने पैसे सस्ते ख़रीदे हैं और पैसे महंगे बीच रहा है फुट की ख़रीद-ओ-फ़रोख़त भी इस्लाम में जायज़ नहीं है क्योंकि पैसा एक यूनिट है चीज़ों की मिक़दार के नापने का जिस तरह से मीटर और जिस तरह से ग्राम और किलो ग्राम होते हैं इसी तरह से पैसा भी होता है उस को पहन नहीं सकते , ओढ़ नहीं सकते ,खाभी नहीं सकते । लेकिन उस को इस्तिमाल करके बिज़नस बढ़ा सकते हैं।इन ख़्यालात का इज़हार डाक्टर शार्क़ निसार ने औरंगाबाद के मौलाना आज़ाद कॉलिज, मिलेनियम इंस्टीटियूट आफ़ मैनिजमंट में तलबा को ख़िताब करते हुए किया।उन्हों ने कहा कि अगर वो ख़ुद अपने आप में खरीदें और बेचे जाने लगे तो मार्कीट में Distortions पैदा होंगे, मार्कीट ख़राब हो जाएगी जिस का नुक़्सान होगा समाज को । तो बैंक यहां पर पैसे को ख़रीद रहा है और बीच रहा है। अगर इस में लोग पैसा कमाएं तो पैसे मईशत में ला कर कौन लगाएगा। उधर हम बैंक का तन्क़ीदी जायज़ा लें तो इस का काम तो दरुस्त है इस का मक़सद भी दरुस्त है लेकिन जिस तरीक़ा से ये काम कर रहा ह्ययोनि फुट की ख़रीद-ओ-फ़रोख़त और सूद, ये एक मसला है इस्लामी एतबार से, क्योंकि ये रबो है और रबो से हमें बचना है ।उन्हों ने कहा कि दूसरी जो बैंक की ख़ासीयत है वो ये कि नफ़ा के कामों में पैसा लगाएगा चाहे जहां से भी नफ़ा आरहा हो। अब इस में अगर इंसानों के लिए नुक़्सानदेह चीज़ से भी नफ़ा आ रहा है तो कोई मतलब नहीं, मेरा तो फ़ायदा होरहा है नुक़्सान तो दुनिया का होरहा है, हुआ करे। वो शराब के कारोबार में पैसा लगाएगा वो तंबाकू के कारोबार में पैसा लगाएगा वो किसी ऐसे कारोबार में पैसा लगाए गाजस् का मक़सद है नफ़ा कमाना अपने शईर होल्डर्स के लिए । तो ये दो ऐसी बुनियादें हैं जिन को देखते हुए हमें इस बात की ज़रूरत पेश आती है कि हम एक ऐसा बैंकिंग निज़ाम तजवीज़ करें जो समाज की तमाम जायज़ ज़रूरीयात को पूरा करे मगर जायज़ तरीक़ा के साथ। इसी काम को हम इस्लामिक बैंकिंग के नाम से जानते हैं।टूर्स मैचोल फ़ंड के मार्केटिंग हैड कुन्तल खटाओटे ने कहा कि मैचोल फ़ंड का मार्कीट हिंदूस्तान में बढ़ता जा रहा है बहुत सारी कंपनीयां अपना प्रोदकट लेकर मार्कीट में आरही हैं ऐसे में हमें इस बात पर तवज्जा दीनी चाहीए कि कौन बेहतर मुनाफ़ा दे रहा है और किस का बिज़नस है।

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