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उत्‍तर प्रदेश के किसानों की कर्जमाफी के लिए कर्ज़

by | Jul 4, 2025

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य के किसानों का कर्ज माफ कर फिलहाल राजनीतिक लाभ की फसल तो काट ली है पर राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए कई चुनौतियां भी खड़ी कर ली हैं। राज्य सरकार ने किसानों के एक लाख रुपये तक के फसली ऋण माफ करने की घोषणा की है। इससे प्रदेश के 86 लाख किसानों के 30 हजार 729 करोड़ रुपये के कर्ज माफ होंगे। इसमें डिफाल्टर किसानों की कर्जमाफी भी जोड़ लें तो इस फैसले से सरकार पर करीब 36,395 करोड़ रुपये का बोझ आएगा।

दिलचस्प तो यह है कि राज्य सरकार किसानों का कर्ज चुकाने के लिए खुद भी कर्ज लेगी। उसने किसान राहत बांड जारी कर पैसा जुटाने का ऐलान किया है। इससे कितना पैसा आ पाएगा फिलहाल कहा नहीं जा सकता। फिर इस पर सरकार को ब्याज भी चुकाना होगा। जाहिर है, बांड के भरोसे रहा नहीं जा सकता। अंतत: सरकार को अपने संसाधनों से ही भुगतान करना होगा। इसका मतलब यह है कि दूसरी मदों से पैसे काटे जाएंगे जिसका विकास कार्य पर असर पड़ेगा। किसान को वाकई फायदा होगा या नहीं, यह भी निश्चित नहीं है। यूपी सरकार पर पहले से ही काफी बोझ है। पिछली सरकार ने एक्सप्रेस-वे और मेट्रो जैसी परियोजनाएं पूरा करने के लिए भी भारी कर्ज लिया था। इसके ब्याज का भुगतान भी करना होगा। कर्ज माफी के अब तक के अनुभव यही बताते हैं कि इससे तात्कालिक राहत भले ही मिलती हो पर लंबे समय में नुकसान ही होता है।

उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में कर्जमाफी के बाद कुछ दिन किसानों की खुदकुशी के मामले कम हुए लेकिन फिर वह तेजी से बढ़ने लगे। यही हाल कर्नाटक का भी हुआ। वहां एक बार तो ऋण से मुक्ति मिल गई लेकिन बीज, उर्वरक और कीटनाशकों के महंगे होने और सार्वजनिक सिंचाई सुविधाओं की कमी के चलते किसान फिर कर्ज के अंतहीन जाल में उलझ गए। इस पहलू पर सरकारें ध्यान ही नहीं देतीं। कर्ज माफी का नुकसान यह होता है कि किसानों और बैंकों के बीच रिश्ता बिगड़ जाता है। बैंक फिर से ऋण देने में आनाकानी करने लग जाते हैं। इससे किसान मजबूर होकर साहूकारों के पास जाते हैं जो उनसे बहुत ऊंची ब्याज दर वसूलते हैं। यह एक सचाई है कि भूजल में गिरावट, बीज, उर्वरक, कीटनाशक, मशीनरी आदि के लिए बाजार पर निर्भरता से बिना कर्ज के खेती करना लगभग असंभव हो गया है। ऐसे में उपाय यही बचता है कि किसानों की गैर कृषि आय बढ़ाई जाए। यह दुग्ध उत्पादन, मुर्गी-मछली पालन या फिर कृषि आधारित लघु उद्योगों को बढ़ावा देकर ही संभव है। यह सब तब होगा जब कृषि सरकार की प्राथमिकता में हो। अभी तो सरकारों के लिए किसान महज एक नारा है, जिसके जैसे-तैसे निपटारे के लिए वह कर्जमाफी जैसे शॉर्टकट से काम चलाना चाहती हैं।

(सांभर NBT)

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