By Maeeshat News
भ्रष्टाचार की बीमारी ने देश के मुसलमानों सहित कमजोर वर्गों को सबसे अधिक अपना शिकार बनाया है जिस से मुस्लिम समाज गरीबी के स्तर से नीचे आ गया है। जिसके लिए पिछले साल भारतीय रिजर्व बैंक ने देश में परम्परागत बैंकों में धीरे-धीरे ‘इस्लामी बैंक सुविधा’ देने का प्रस्ताव किया है जिसमें ब्याज-मुक्त बैंकिंग सेवा के प्रावधान किए जा सकते। भारत में शरीयत के अनुरूप इस्लामी बैंकिंग को व्यापक तौर पर शुरू करने लिए पहला कदम तब लिया गया जब सऊदी अरब स्थित इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक को गुजरात में परिचालन की अनुमति दे दी गयी।
क्या है इस्लामिक बैंकिंग?
इस्लामी कानून यानि शरयी के सिद्धान्तों पर काम करने वाली बैंकिंग व्यवस्था को इस्लामिक बैंकिंग कहा जाता है। इस्लाम ने सूद को हराम क़रार देकर इंसानी जि़न्दगी से जुल्म और बेइंसाफी की एक बहुत बड़ी शक्ल को खत्म करना चाहा है और अमली ऐतेबार से दौरे जदीद में इस्लामी जि़न्दगी की तंजीमे नौ के सिलसिले में यह एक बहुत बड़ा चैलेंज है। जदीद मईशत में सूद और सूदी कारोबार काफी अहमियत इख्तियार कर चुकी है जबकि बैंकिंग का पूरा निजा़म सूद पर क़ायम है। मआशी जि़न्दगी की इस्लामी तामीरे नौ के लिए ज़रूरी है कि सूद के बगैर बैंकिंग का निज़ाम क़ायम किया जाये इस शरीयत के साथ इस्लामी बैंकिंग की शुरुआत की गई है।
इस्लामिक बैंकिंग का तरीक़ा
इस्लामिक बैंकिंग निम्न तरीक़े से होती है:-
1. मुशारकह (नफा और नुक़सान में शरीक होकर कारोबार करना)
2. मुराबाहह (किसी चीज़ को नफा लेकर बेचना)
3. इजारह (किसी चीज़ को उजरत पर देना)
4. सलम (पेशगी कीमत देकर माल बाद में लेना)
5. इस्लामिक इन्वेस्टमेंट फण्ड्स (इक्विटी फण्ड, इजारह फण्ड, कमोडिटी फण्ड, मिक्सड फण्ड)
वर्तमान में निम्न प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं:-
1. बचत खाता
2. मियादी जमा योजना
3. रेकरिंग डिपोजिट
4. डैली डिपोजिट
5. इक्वीटी फण्ड
6. कमोडिटी फण्ड
7. ट्रेडिंग आधारित अकाउंट