नई दिल्ली: ठीक एक महीना पहले 2 जुलाई को केंद्र सरकार ने महंगाई रोकने के लिए कैबिनेट की बैठक की और एक बहुत बड़े फैसले के तहत यह ऐलान किया कि आलू−प्याज की जमाखोरी रोकने के लिए वह इसकी अधिकतम स्टॉक लिमिट तय करेगी। यानी सरकार आलू−प्याज़ की जमाखोरी की परिभाषा तय करना चाहती और यह तब होगी जब एक होलसेलर या रिटेलर अपने पास कितनी मात्रा में आलू-प्याज रख सकता है यह तय हो, क्योंकि अभी तक फल−सब्ज़ी पेरिशेबल कमोडिटी हैं इसलिए अब तक इन पर किसी तरह की स्टॉक लिमिट लागू नहीं थी।
एक महीना हो गया है और अब तक केवल मध्य प्रदेश ने यह दावा किया है कि वह अपने यहां केवल प्याज पर 3−4 महीनों के लिए स्टॉक लिमिट लगाएगा, लेकिन आलू पर स्टॉक लिमिट लगाने से वह भी मना कर रहा है और दलील यह है कि पिछले 4−5 सालों में मध्य प्रदेश में आलू के दाम स्थिर रहे हैं इसलिए आलू पर ऐसी कोई लिमिट नहीं लगेगी।
जिस दिल्ली में केद्र सरकार ने महीनेभर पहले यह फैसला किया कि आलू−प्याज़ पर स्टॉक लिमिट लगाई जाए, उस दिल्ली में भी अभी इस मुद्दे पर चर्चा ही चल रही है।
देश की सबसे बड़ी आज़ादपुर मंडी, जो पूरे देश से जुड़ी हुई है, उसके व्यापारी बता रहे हैं कि देश में कहीं भी स्टॉक लिमिट लगेगी तो सबसे पहले उनको पता लगेगा इसलिए व्यापार सूत्र कह रहे हैं कि महीनेभर में कायदे से तो कहीं स्टॉक लिमिट लागू हुई ही नहीं है।
खाद्य मंत्रालय के पास भी ऐसी कोई जानकारी नहीं, जिसमें राज्य स्टॉक लिमिट लगाने की बात सूचित कर रहे हों।
ऐसे में सवाल यह है कि अब ये पूरा मामला किस तरफ जा रहा है और अब सरकार के महंगाई रोको प्लान में आगे क्या हो सकता है।
जहां तक मेरा तजुर्बा है, उसके हिसाब से केंद्र सरकार कहेगी कि स्टॉक लिमिट लगाना राज्य सरकार का काम है और राज्य सरकारें भी स्टॉक लिमिट लागू ना करने के बहुत-से कारण गिनवा देंगी और कहानी यूं ही चलती रहेगी, जैसी सालों से चल रही है।