फ्रैंक एम. इस्लाम
राष्ट्रीय चुनाव की गहमागहमी वाले साल में यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना (सार्वभौमिक बुनियादी आय योजना) एक सियासी फुटबॉलबन गयी है।
विपक्षी कांग्रेस पार्टी गरीबों के लिए एक राष्ट्रव्यापीन्यूनतम आय लागू करने का वादा कर रही है तो प्रधानमंत्रीनरेन्द्र मोदी की सरकार निर्धन किसानों के लिए बुनियादी आय का प्रस्ताव दे रही है,इस बेहद गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दे पर राजनीतिकखेल खेलने से बचने की जरूरत है,जरूरत इस बात की है कि एक स्वतंत्र आयोग सावधानीपूर्वक निष्पक्ष आकलन करे कि भारत और यहां के लोगों के बेहतर भविष्य के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम काकौन सा रूप उपयोगी होगा।
इस आकलन में जिन कारकों को शामिल किया जाना चाहिए वे इस प्रकार हैं: पहले तो इस योजना की परिकल्पना क्या है; इसकी लोकप्रियता में वृद्धि के क्या कारण हैं; इस बात की समीक्षा कि जहांयूनिवर्सल बेसिक इनकम लागू किया गया है वहां इसका परिणाम कैसा रहा; अनुमानित लागत और लाभ; और ऐसी योजना को भारत में लागू करने की कितनी गुंजाइश है?
अच्छी बात यह है कि इस तरह के आकलन के लिए कई स्रोत मौजूद हैं जिनसे सहायता ली जा सकती है। ये हैं: बीआईईएन (बेसिक इनकम अर्थ नेटवर्क) के शोध और लेख, यह जानकार लोगों औरसंगठनों का अंतरराष्ट्रीय समूह है जो बेसिक इनकम के क्षेत्र में काम करता है; भारत सरकार के वित्त मंत्रालय की 2016-17 का आर्थिक सर्वे और ‘कारनेगी इंडिया’ का फरवरी 2018 का प्रकाशन ‘इंडियाज
यूनिवर्सल बेसिक इनकम’।
‘बीआईईएन’ ने यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) को इस तरह परिभाषित किया है: निश्चित अवधि का नकद भुगतान जो बिना शर्त व्यक्तिगत आधार पर सबको दिया जाए और जिसके लिए जरूरत याकाम आधार न हो। इस परिभाषा में जिस बिन्दु पर जोर दिया गया है वह है काम की जरूरत का आधार न होना।
भारत में यूबीआई के बारे में अभी की चर्चा वास्तव में 2016,17 के आर्थिक सर्वे से शुरू हुई थी जिसमें इस विषय पर एक पूरा अध्याय लिखा गया है,इस सर्वे में बताया गया था कि गरीबी से निपटने काभारतीय दृष्टिकोण निष्प्रभावी है, इसकी कल्याणकारी योजनाएं निम्नस्तरीय हैं और इसका लक्ष्य भी सही नहीं है,इसमें उनकी जगह यूबीआई लाने को कहा गया था जिसके तीन अवयव हैं: सबके लिए, बिनाशर्त और एक एजेंसी।
इस सर्वे में यह बताया गया था कि अगर भारत की 75 प्रतिशत आबादी को सालाना लगभग 7620 रुपये ट्रांसफर किये जाएं तो यहां गरीबी दर एक प्रतिशत से कम हो सकती है,सर्वे में अंदाजा लगाया गयाथा कि अगर अगर अभी के सभी कल्याणकारी और आय सहायता कार्यक्रम खत्म कर दिये जाएं तो इस नयी योजना की लागत भारत के कुल घरेलू उत्पाद का 4.7 प्रतिशत होगी।
इस सर्वे में संपूर्ण आच्छादन की बात नहीं कही गयी थी,राजनैतिक और वित्तीय कारणों से इसने शीर्ष 25 प्रतिशत को भारत के आय वितरण के तहत भुगतान नहीं करने का परामर्श दिया है।
कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यूबीआई की परियोजना और नक़द भुगतान कार्यक्रम के अच्छे परिणाम सामने आये हैं। इसके अलावा विकासशील देश जैसे कनाडा, हॉलैंड और फिनलैंड में भीयूबीआई को आज़माया गया है।
फिनलैंड ने इसपर जनवरी 2017 से दिसम्बर 2018 के बीच 2000 बेरोज़गार नागरिकों को नियमित मासिक आय देकर प्रयोग किया है। इसे नौकरी मिलने के बाद भी कम नहीं किया गया। इस वर्ष फरवरीमें इसके शुरुआती नतीजे बताये गए। इसमें पता चला कि आजमाये गए ग्रुप को कंट्रोल ग्रुप की तुलना में काम मिलने की सम्भावना ज्यादा नहीं है लेकिन वे हर दृष्टि से बेहतर जीवन जी रहे थे।
इस परिणाम के सामने आने के बावजूद फिनलैंड यूबीआई को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की पहल नहीं कर रहा है।
इससे जुड़े अध्ययन को ‘सेवा’(सेल्फ एम्प्लॉयड वीमेंस एसोसिएशन) के लिए यूनिसेफ ने आर्थिक सहायता प्रदान की थी। इस अध्ययन से पता चला कि जिन्हें नकद भुगतान किया गया उन्हें यह सब्सिडी सेबेहतर विकल्प लगा।
इसके अलावा कई सकारात्मक परिणामों का पता चला,अगर छोटे से राज्य सिक्किम अपनी घोषित योजना के साथ सभी नागरिकों के लिए यूबीआई लागू करे तो 2022 तक विश्व के इतिहास में यूबीआई की सबसे बड़ी योजना हो जाएगी।
यूबीआई के बारे में काफी कुछ लोगों को मालूम है लेकिन अब भी बहुत कुछ सीखा जाना बाकी है,यूबीआई को व्यापक पैमाने पर लागू करना अभी एक परिकल्पना ही है, व्यावहारिक सच्चाई नहीं,इसकेमद्देनजर अभी बड़े परिवर्तन करना जल्दबाजी होगी जिसके अलक्षित और अवांछित परिणाम हो सकते हैं,सही प्रक्रिया वह होगी जो ‘कारनेगी इंडिया’ की रिपोर्ट में अनुशंसित है। इसमें कहा गया है किएक या कई व्यापक स्तरीय प्रायोगिक आकलन किया ,
‘कारनेगी’ के अनुसार ऐसे प्रयोग से आंकड़ा आधरित नये साक्ष्य मिलेंगे जिससे यूबीआई पर परामर्श में मदद मिलेगी। इससे भारत कीकल्याणकारी संरचना में बिना शर्त राशि भुगतान के सबसे प्रभावी रूप का पता चल सकेगा।
एक कहावत है,‘महान विचारों को धरातल पर उतारने और उसके लिए पंखों की जरूरत होती है’, मेरा विश्वास है कि यूबीआई एक महान विचार है.इसे राजनीतिक अखाड़े से बाहर निकालकर एकनिष्पक्ष आयोग के हवाले करना समय की मांग है.साथ ही अध्ययन करने और इसकी सिफारिशों का प्राप्त कर भारत के राजनेता एक अंतिम यूबीआई नीति सुनिश्चित कर सकते हैं जो सही तरीके सेधरातल पर लागू हो।